-कारवां, आजादी के बाद देश के सभी बड़े शहरों में पाकिस्तान से आने वाले हिंदू और सिख शरणार्थियों की संख्या हर बीतते दिन बढ़ रही थी. जवाहरलाल नेहरू उस समय देश की अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री थे और उनके आधिकारिक आवास तीन मूर्ति भवन में भी लोगों की भीड़ लगी रहती. नेहरू के निजी सचिव रहे एम. ओ. मथाई अपनी किताब रेमनिसंस ऑफ दि नेहरू ऐज में नेहरू की एक आदत...
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सेना में महिलाओं की बढ़ती संख्या के साथ यौन शोषण के बढ़ते मामलों की अनदेखी नहीं की जा सकती, चुप्पी नहीं साध सकते
-द प्रिंट, सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर में एक फैसला सुनाकर सेना में महिलाओं को नेशनल डिफेंस एकेडमी के जरिए सीधे कमीशन किए जाने का रास्ता साफ कर दिया. पिछले साल 17 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्देशक फैसला सुनाकर शॉर्ट सर्विस कमीशन की महिला अधिकारियों को भारतीय सेना के उनके पुरुष सहकर्मियों के बराबर का दर्जा दे दिया था ताकि उन्हें स्थायी कमीशन के लिए, और इन्फैन्ट्री/ मेकनाइज्ड इन्फैन्ट्री/ आर्मर्ड कोर तथा आर्टिलरी को...
More »ग्राउंड जीरो: गुम है रोशनी कहीं
-आउटलुक, “दुनिया के सामने तालिबान की पेश हुई उदार छवि उसके सत्ता कब्जाने के तरीके से कैसे हवा हुई और अफगानी समाज के विभिन्न तबकों का नजरिया क्या” हम पर और ताजा-ताजा कब्जे वाले काबुल पर पूरी दुनिया की नजर है। लेकिन 18 अगस्त को राजधानी से 240 किमी. उत्तर-पश्चिम के शहर से ऐसी खबर आई, जो बताती है कि अफगानिस्तान में आगे क्या होने वाला है। पहाड़ियों और रहस्यमय गुफाओं की...
More »काबुल ने बाइडन को भेड़ की खाल में छुपा भेड़ साबित किया, यूरोप, भारत और क्वाड उनके रुख से हैरत में है
-द प्रिंट, काबुल हवाई अड्डे पर करीब 100 लोगों की हत्या करने वाले बम धमाके के कुछ ही घंटे बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बयान जारी किया कि ‘हम न माफ करेंगे और न भूलेंगे. हम तुम्हें खोज निकालेंगे और कीमत वसूल करेंगे.’ अंतिम सूचना तक धमाके में अमेरिका के 13 सैनिक भी मारे गए थे. बाइडन ने अपना गुस्सा, संकल्प और आक्रामकता दिखाने की पूरी कोशिश की. लेकिन अफसोस कि...
More »विमर्श : इतिहास पर छापा
-आउटलुक, “हिंदुत्ववादी शक्तियां इतिहास को विचारधारा के अनुसार बदलने के लिए राजसत्ता का इस्तेमाल करती हैं” पिछली शताब्दी के शुरुआती वर्षों से ही हिंदू सांप्रदायिक शक्तियां भारत के अतीत को अपने चश्मे से देखकर इतिहास को अपनी विचारधारा के अनुसार बदलने की कोशिश करती रही हैं। पुरुषोत्तम नागेश ओक ने पांच दशकों से भी अधिक समय तक इस अभियान का नेतृत्व किया और कई पुस्तकें लिखीं। 1964 में ‘भारतीय इतिहास पुनर्लेखन संस्थान’...
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