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नौकरियां कहां हैं?-- संदीप मानुधने

एक सौ तीस करोड़ से अधिक की जनसंख्या के हमारे देश में हमें लगातार बताया गया है कि अधिकांश आबादी युवा है और यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है. यह तर्क मैंने 1997 के बाद से लगभग हर राजनेता को इस्तेमाल करते देखा. तब उम्मीदें आसमान तो छू रही थीं, क्योंकि वैश्वीकरण के चलते हर तरह की तरक्की का वादा हमसे हुआ था, (और कुछ हद तक वैसा हुआ भी)....

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बुनियादी बदलाव की राजनीति -- राजेन्द्र तिवारी

बिहार के लोग बधाई के पात्र हैं. उन्होंने शराबबंदी और नशाबंदी जैसे सामाजिक मुद्दे पर एकजुटता दिखा कर पूरी दुनिया और खासतौर पर देश के अन्य राज्यों को विशिष्ट संदेश दिया है. शराब जैसी सामाजिक बुराई के खिलाफ व्यापक स्तर पर लोगों को तैयार करने का श्रेय निश्चित रूप से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जाता है. नतीजा यह है कि शुरुआत में शराबबंदी का किसी-न-किसी बहाने विरोध करनेवाले लोगों को...

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कैलेंडर पर गांधी के होने का अर्थ-- विश्वनाथ सचदेव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा के सबसे बड़े नेता हैं. और मोदी-समर्थकों की मानें, तो देश के सबसे बड़े नेता हैं. इसमें संदेह नहीं कि पिछले आम चुनावों में भाजपा की अभूतपूर्व सफलता का श्रेय उन्हें ही जाता है. अब माना यही जा रहा है कि मंत्रिमंडल के नाम पर लिये जानेवाले सारे बड़े निर्णय प्रधानमंत्री और उनका कार्यालय ही लेता है. यह स्थिति मंत्रिमंडल के सामूहिक उत्तरदायित्व वाली हमारी जनतांत्रिक...

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लोकतंत्र में भय ! -- रविभूषण

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक आेबामा ने पिछले सप्ताह अपने विदाई-भाषण में लोकतंत्र को लेकर जो गहरी चिंताएं व्यक्त की हैं, उन पर हम सब का ध्यान देना अधिक आवश्यक है. संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत को दो प्रमुख लोकतांत्रिक देश माना जाता है. भारत में लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तंभ- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका आज किस हालत में हैं? एडमंड बर्क (1729-1797) ने 1787 में एक संसदीय बहस में जिस 'प्रेस'...

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धर्म और जाति पर न हो वोट--- विश्वनाथ सचदेव

‘अभी रुग्ण है तेरे-मेरे जीने का विश्वास रे', इस पंक्ति में कवि ने जीने के विश्वास को परिभाषित करते हुए उन जनतांत्रिक मूल्यों-सिद्धांतों का हवाला दिया था, जिनके आधार पर हमने स्वतंत्रता पाने के बाद एक पंथ-निरपेक्ष, समतावादी राष्ट्र-समाज के निर्माण का संकल्प लिया था. यह त्रासदी ही है कि वैसा समाज, वैसी व्यवस्था आज भी एक सपना ही है. आज भी हमारा देश धर्मों, जातियों, वर्गों में बंटा हुआ...

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