नई दिल्ली [भारत डोगरा]। जहां एक ओर कृषि नीति के सामने महंगाई व किसानों के कर्ज की ज्वलंत समस्याएं हैं, वहीं दूसरी ओर जलवायु बदलाव के संकट से जूझना भी जरूरी है। वैसे तो पहले भी यह बार-बार अहसास हो रहा था कि न्याय, समता व पर्यावरण हितों की रक्षा और खेती में टिकाऊ प्रगति के लिए कृषि-नीति में बदलाव जरूरी हो गए हैं। अब जब जलवायु बदलाव के कुछ दुष्परिणाम नजर आने लगे हैं और...
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किसानों के मुफीद नहीं हैं फसल बीमा स्कीमें
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। केंद्र सरकार ने मौसम आधारित फसल बीमा योजनाओं [डब्लूबीसीआईएस] को तो लागू कर दिया है, लेकिन कई खामियों की वजह से यह किसानों के लिए बहुत उपयोगी साबित नहीं हो पा रही हैं। राज्य सरकारों की उदासीनता भी कहीं न कहीं इसके लिए जिम्मेदार है। प्रमुख उद्योग चैंबर फिक्की के मुताबिक केंद्र सरकार को सबसे पहले इन स्कीमों के लिए कम से कम तीन वर्ष अवधि की रणनीति बनानी चाहिए।...
More »किसानों की आत्महत्याः एक 12 साल लंबी दारूण कथा
कुछ लोगों के लिए किसानी मुनाफे का धंधा हो सकती है, लेकिन देश की बहुसंख्यक आबादी के लिए यह घाटे का सौदा बना दी गई है. न सिर्फ घाटे का सौदा, बल्कि मौत का सौदा भी. और यह सिर्फ इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि खेती से महज कुछ लोगों का मुनाफा सुनिश्चित रहे. यही वजह है कि खेतिहरों के कर्जे की माफी का फायदा भी आम खेतिहरों को नहीं मिला बल्कि बड़े किसानों को...
More »नशे में उड़ रही है हरित क्रांति की खुशहाली
चंडीगढ़.हरित क्रांति ने पंजाब को खुशहाल किया, लेकिन इस खुशहाली का सबसे बड़ा फायदा नशे के कारोबारियों ने उठाया। नशे की लत अब इस खुशहाली को लील रही है। नशा सेहत के साथ सरहदी जिलों के किसनों की माली हालत भी बिगाड़ रहा है। अमृतसर, गुरदासपुर, तरनतारन और फिरोजपुर जैसे सरहदी जिलों में हर महीने आधे परिवार नशे पर 1500 से 3000 रुपए खर्च कर रहे हैं। किसान और मजदूर अपनी सुबह की शुरुआत चूरापोस्त और...
More »धरती कहे पुकार के
ढ़ती हुई कीमतें उस आपदा का सिर्फ एक संकेत हैं, जिससे खेती जूझ रही है. दरअसल भारतीय कृषि क्षेत्र बुरी तरह से चरमरा रहा है. संकट से पार पाने के लिए नजरिए में बड़े बदलावों की जरूरत है. लेकिन कृषि मंत्री शरद पवार आपदा की इस आहट को सुनने के लिए तैयार नहीं. अजित साही और राना अय्यूब की रिपोर्ट सरकारी नीतियों से लेकर अखबार की सुर्खियों तक तरजीह पाने वाली...
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