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गांव में अपराध: क्या सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं से फर्क पड़ता है?

-गांव सवेरा, ग्रामीण भारत में गरीबी के उन्मूलन और आर्थिक विकास हेतु अच्छी बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच होना महत्वपूर्ण है। यह लेख, भारत मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस) के 2004-05 और 2011-12 के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए दर्शाता है कि पक्की सड़कों से जुड़े गांवों के परिवारों में अपराध, श्रम बल की भागीदारी और पारिवारिक आय के सन्दर्भ में उन गांवों में रहने वालों की तुलना में बेहतर परिणाम पाए गए...

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नदियों को जिंदा रखने के लिए वन जरूरी संपदा

-इंडिया वाटर पोर्टल, नदियों  का विकास या कहें कि नदीयों  का जन्म अधिकतम वे स्थान रहें जो पहाड़ी, पठारी,ऊंचे भूभाग वाले क्षेत्र जहां वन  एवं वन सम्पदा अधिक मात्रा में पाई जाती रही, नदी छोटी हो या बड़ी "नदी ही है"। नदी का अपना महत्व है। नदियों जितने सघन वन व ऊंचे पहाड़ों से धरातल की ओर बहती , उतने ही लंबे समय जलधारा से खुशहाली पैदा करने के साथ वर्ष भर...

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घोर उपेक्षा: भारत की राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना

-आइडियाज फॉर इंडिया, परिवार में कमाने वाले सदस्य की मृत्यु होने की स्थिति में परिवारों को वित्तीय सहायता प्रदान करने वाली राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना (एनएफबीएस) कम बजट आवंटन, प्रतिबंधित कवरेज और प्रशासनिक बाधाओं से घिरी हुई है। इस लेख में, जैस्मीन नौर हाफिज इस योजना के कार्यान्वयन में आने वाली इन कठिनाइयों और अन्य मुद्दों की जांच करती हैं, और भारत के सामाजिक सुरक्षा ढांचे के इस महत्वपूर्ण घटक को सुधारने...

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उत्तर प्रदेश: मंडियों की कमाई में आई 770 करोड़ रुपए की कमी, विवादित कृषि कानून बना प्रमुख कारण

-न्यूजलॉन्ड्री, उत्तर प्रदेश सरकार ने विधानसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि बीते साल मंडी शुल्क में भारी कमी आई है. जवाब के मुताबिक जहां 2019-20 में मंडी शुल्क के रूप में 1390.60 करोड़ रुपए प्राप्त हुए थे, वहीं 2020-21 में घटकर 620.81 करोड़ रुपए हो गया. मंडी शुल्क में आई इस कमी की एक वजह केंद्र सरकार द्वारा पास किए गए तीन विवादित कृषि कानूनों में से एक कृषि...

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जलवायु संकट पर अमीर देशों और भारत के ताकतवर लोगों के भरोसे रहना बड़ी भूल

-कारवां,  हाल ही में 31 अक्टूबर और 12 नवंबर के बीच ग्लासगो में संपन्न हुई जलवायु परिवर्तन की 26वीं अंतर्राष्ट्रीय वार्ता में भारत सहित कई विकासशील देशों ने जलवायु न्याय का मुद्दा उठाया. इन देशों की मांग वाजिब है क्योंकि बैंगलुरु के राष्ट्रीय प्रगत अध्ययन संस्थान की डॉक्टर तेजल कानिटकर के अनुसार, विश्व के सबसे धनी देश 1990 में अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन के समझौतों पर चर्चा शुरू होने तक जलवायु परिवर्तन...

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