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कर्ज - आत्महत्या | किसान और आत्महत्या
किसान और आत्महत्या

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मीता और राजीव लोचन द्वारा प्रस्तुत- फार्मस् स्यूसाइड- फैक्ट एंड पॉसिबल प़लिसी इन्टरवेंशनस्(२००६) किसानों की आत्महत्या पर एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इसमें कतिपय पूर्ववर्ती अध्ययनों मसलन(मिश्र और दांडेकर तथा अन्य) का जायजा लिया गया है और उनकी खामियों की रोशनी में कहीं ज्यादा समग्र अध्ययन प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है। इस अध्ययन के अनुसार-,

http://www.yashada.org/organisation/FarmersSuicideExcerpts.pdf
 

• आत्महत्याओं का प्रमुख केंद्र महाराष्ट्र का यवतमाल जिला रहा है। सूबे के क्राईम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार साल 2000, 2001, 2002, 2003 और 2004 यहां क्रमश 640, 819, 832, 787 और 786 किसानों ने आत्महत्या की।

 
• आत्महत्या करने वालों में ज्यादातर पुरुष और ३०-५० आयुवर्ग के लोग थे। ये शादीशुदा और शिक्षित किसान थे। इनके ऊपर बेटी या बहन का ब्याह करने जैसी गहन सामाजिक जिम्मेदारी भी थी।आत्महत्या करने वाले ज्यादातर किसानों में दो बातें समान थीं। एक तो यह कि इन किसानों ने समय के किसी बिन्दु पर अपने को पारिपारिक द्वन्दों को सुलझाने में तथा धन के अभाव में कर्ज चुकता करने में अत्यंत असहाय महसूस किया, दूसरे इन लोगों को किसी ऐसे व्यक्ति या संस्था की मदद भी ना मिली जो इन्हें कारगर पारिवारिक या सार्वजनिक मुद्दे पर सलाह देती या फिर किसी तरह से सहारा साबित होती।

 
• अध्ययन के अनुसार लोगों ने सरकार द्वारा चलायी जा रही विभिन्न योजनाओं के बारे में जानकारी ना होने की बात कही। उन्हे इस बात की भी कोई खास जानकारी नहीं थी कि न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसी भी कोई चीज होती है जिसका मार्केंटिंग पर असर पड़ता है।किसानों के पास तकनीकीपरक जानकारी बड़ी कम थी और उन्हें इसके बारे में वक्त जरुरत बताने वाला भी कोई(व्यक्ति या संस्था) नहीं था। ज्यादातर किसानों को फसल बीमा के बारे में भी सूचना नहीं थी।

•आत्महत्या करने वालों में ज्यादातर हिन्दू धर्म के मानने वाले किसान थे। इसका एक कारण संभवतया हिन्दू धर्म में कतिपय हालात में देहत्याग करने के बारे में देशना का मौजूद होना है।

• शराबनोशी और मादक द्रब्यों की लत के लक्षण ग्रामीण आबादी में अध्ययन के दौरान देखने में आये।

• आत्महत्या करने वाले पर सबसे ज्यादा बोझ उस स्थिति में पड़ा जब उसने कर्जा अपने ही किसी रिश्तेदार से लिया हो और यह रिश्तेदार तगादा कर रहा हो। महाजन और बैंक इस मामले में रिश्तेदारों से कहीं कम दबावकारी साबित हुए।

 

दस सूत्री सुझाव:

 
1.सरकारी कारिन्दों और ग्रामीण समुदाय के बीच मोलजोल बढ़ना चाहिए। इसके लिए दौरा, रात्रि विश्राम और ग्रामसभा जैसे उपायों का सहारा लिया जा सकता है। प्रशासन के हर स्तर के अधिकारी ग्राम समुदाय से ज्यादा से ज्यादा मेलजोल रखने की कोशिश करें।

 
2. स्थानीय समुदाय, खासकर किसान समुदाय पर गहरी नजर रखी जाय और उनके बीच किसी तरह के आर्थिक, सामाजिक या मनोवैज्ञानिक संताप के लक्षण नजर आयें तो सामाजिक-आध्यात्मिक-मनोवैज्ञानिक मदद पहुंचायी जाय।

 
3. जो प्रावधान किसानों और खेतिहर मजूरों के हितों की रक्षा में पहले से मौजूद हैं, मसलन मनी लेंडिंग एक्ट या फिर न्यूमतम मजदूरी का कानून, उन पर कड़ाई से अमल हो।

 
4. कृषि विस्तार की गतिविधियों की कार्यसक्षमता में इजाफा किया जाय।

 5. सरकार समाज कल्याण के नाम पर जिन योजनाओं के तहत मदद मुहैया करा रही है उनकी कारकरदगी बढ़ायी जाय।

6. ग्रामीण आबादी की सेवा में प्रशिक्षित और तनख्वाहयाफ्ता कर्मियों को लगाया जाय। तुरंत मदद देने की जरुरत है।

 7. दूरगामी बदलाव के लिए स्कूली शिक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए। साथ ही ग्राम और तालुके के स्तर पर समुचित मात्रा में व्यावसायिक शिक्षा भी दी जाय ताकि लोग मौजूदा समय की व्यापारिक और वाणिज्यिक जटिलताओं को समझ सकें।

 8. मीडिया से कहा जाय कि वह आत्महत्या की खबरों को ज्यादा सनसनीखेज बनाकर प्रस्तुत ना करे क्योंकि ऐसी खबरों से आत्महत्या की प्रवृति जोर पकड़ती है।

9. मृतक के परिवार को मुआवजा के रुप में धन प्रदान करने की जगह परिवार के सदस्य को रोजगार प्रदान किया जाय या फिर कोई योग्य व्यवसाय खोलने में मदद दी जाय।

 
10. वास्तिविक जोतदार को सब्सिडी सीधे दी जाय

 



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