Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
भूख | कुपोषण
कुपोषण

कुपोषण

Share this article Share this article

What's Inside

पिछले राष्ट्रीय सर्वेक्षणों में राष्ट्रीय स्तर पर 5 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों का प्रतिनिधि डेटा एकत्र नहीं किया था. आबादी के इस हिस्से पर उन लोगों की तुलना में कम ध्यान दिया गया, जिन्हें अधिक असुरक्षित (स्कूल न जाने वाले छोटे बच्चे और किशोर) माना जाता है. स्कूल जाने वाले बच्चे दुनिया के सबसे बड़े स्कूल फीडिंग प्रोग्राम (मिड-डे मील योजना, 2014) के लाभार्थी हैं. इस वजह से ही इस महत्वपूर्ण, लेकिन उपेक्षित आयु वर्ग का कुपोषण और संबंधित कारकों पर प्रतिनिधि डेटा प्राप्त करना, व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (CNNS) का एक प्रमुख उद्देश्य था.

 

पूर्व राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय सर्वेक्षण (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-(NFHS), जिला स्तर पर घरेलू और सुविधा सर्वेक्षण-DLHS, वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण-AHS और राष्ट्रीय पोषण निगरानी ब्यूरो-NNMB) ने कुछ आकंड़े जरूर प्रदान किए, लेकिन गैर-संचारी रोगों और उनके जोखिम भरे कारकों पर पर्याप्त जानकारी नहीं दी. पिछले सर्वेक्षणों और CNNS के बीच पहचाने गए सूचना अंतराल इस प्रकार हैं: 1. आयु समूहों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमियों पर सीमित या कोई डेटा नहीं; 2. अधिकांश पोषण संकेतकों में 5-14 आयु वर्ग के लिए सीमित डेटा; 3. 5 से 10 वर्ष के आयु वर्ग के लिए एनसीडी पर कोई डेटा नहीं; 4. स्कूली बच्चों और किशोरों में हृदय रोग के जोखिम का आकलन करने के लिए लिपिड प्रोफाइल पर डेटा की कमी; 5. स्कूली बच्चों और किशोरों में क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) के उपाय; और 6. ट्रंकल एडिपोसिटी (कमर परिधि), एडिपोसिटी के अन्य उपाय (स्किनफोल्ड थिकनेस), मांसपेशियों की ताकत, और शारीरिक फिटनेस सहित एनसीडी के सहसंबंध.

 

CNNS भारत के सभी 30 राज्यों में ग्रामीण और शहरी घरों को कवर करने वाले एक बहु-चरण सर्वेक्षण डिजाइन का उपयोग करके आयोजित किया गया था. सर्वेक्षण में तीन लक्षित जनसंख्या समूहों से डेटा एकत्र किया गया: प्री-स्कूलर्स (0–4 वर्ष), स्कूल-आयु वाले बच्चे (5-9 वर्ष) और किशोर (10-19 वर्ष). लगभग 112,316 बच्चों और किशोरों को CNNS के उद्देश्य के लिए इंटरव्यू किया गया.

 

CNNS ने भारत के 30 राज्यों के तीन आबादी समूहों के लिए डेटा एकत्र किया: (क) 38,060 प्री-स्कूलर्स जिनकी आयु 0-4 वर्ष है; (ख) 5- 9 वर्ष की आयु के 38,355 स्कूली बच्चों; और (ग) 10-19 वर्ष की आयु के 35,830 किशोर.

भारत: व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण 2016-2018 (अक्टूबर 2019 में जारी) (Comprehensive National Nutrition Survey 2016-2018) (अक्टूबर 2019 में जारी), जिसे संयुक्त रूप से स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW), भारत सरकार, यूनिसेफ और जनसंख्या परिषद द्वारा तैयार किया गया है, के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं: (देखने के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें.),

 

स्तनपान की शुरूआत

• 0-24 महीने की उम्र के 57 प्रतिशत बच्चों को जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान कराया गया.

 

सिर्फ स्तनपान

• छह महीने से कम उम्र के अठारह प्रतिशत शिशुओं को विशेष रूप से सिर्फ स्तनपान कराया गया था.

 

एक वर्ष की आयु में स्तनपान जारी

• 12 से 15 महीने के 83 प्रतिशत बच्चों ने एक वर्ष की आयु में स्तनपान जारी रखा

 

पूरक भोजन/ स्तनपान के अलावा

• 6 से 8 महीने की आयु के 53 प्रतिशत शिशुओं के लिए समय पर पूरक आहार शुरू किया गया था

 

न्यूनतम आहार विविधता, भोजन आवृत्ति और स्वीकार्य आहार

• 6 से 23 महीने की आयु के 42 प्रतिशत बच्चों को उनकी आयु के हिसाब से प्रति दिन न्यूनतम संख्या में खिलाया गया, 21 प्रतिशत को पर्याप्त रूप से विविध आहार दिया गया और 6 प्रतिशत को न्यूनतम स्वीकार्य आहार प्राप्त हुआ.

 

स्कूली बच्चों और किशोरों की आहार श्रंखला

• स्कूल जाने वाले 85 प्रतिशत से अधिक बच्चों और किशोरों ने कम से कम सप्ताह में एक बार हरी पत्तेदार सब्जियाँ और दालें या फलियाँ खाईं

• एक तिहाई स्कूली बच्चों और किशोरों ने प्रति सप्ताह कम से कम एक बार अंडे, मछली या चिकन या मांस का सेवन किया

• 60 प्रतिशत स्कूली बच्चों और किशोरों ने प्रति सप्ताह कम से कम एक बार दूध या दही का सेवन किया.

 

प्री-स्कूल बच्चों में कुपोषण (0–59 महीने)

• पांच साल से कम उम्र के 35 प्रतिशत बच्चे स्टंटिंग (उम्र के हिसाब से कद में छोटे) का शिकार थे. (HAZ <-2 SD यानी जिनकी उम्र के हिसाब से लंबाई कम है; SD का अर्थ है स्टैंडर्ड डेविएशन)

• स्टंटिंग, या उम्र के हिसाब से कम लंबाई होना, पुराने कुपोषण का संकेत है जो लंबी अवधि में पर्याप्त पोषण प्राप्त करने में विफलता को दर्शाता है और यह आवर्तक और पुरानी बीमारी से भी प्रभावित होता है. अगर बच्चों की लंबाई उम्र के हिसाब से कम से कम दो मानक अंको से नीचे है तो उस बच्चे को स्टंटिंग का शिकार कहा जाएगा. (<-2SD) WHO चाइल्ड ग्रोथ स्टैंडर्ड्स मेडियन (WHO, 2009)

• बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सहित कई सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों के बच्चे ज्यादा बड़ी संख्या में स्टंटिंग (37-42 प्रतिशत) का शिकार हैं. सबसे कम स्टंटिंग (16–21 प्रतिशत) गोवा और जम्मू और कश्मीर के बच्चों में पाई गई.

• शहरी क्षेत्रों (27 प्रतिशत) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों (37 प्रतिशत) में पांच वर्ष से कम के बच्चे स्टंटिंग के अधिक शिकार पाए गए. इसके अलावा, सबसे गरीब तबके में सबसे अधिक बच्चे स्टंटिंग (49 प्रतिशत) का शिकार थे, जबकि इसकी तुलना में सबसे अमीर तबके के 19 प्रतिशत बच्चे इसका शिकार थे.

• पांच साल से कम उम्र के 17 प्रतिशत बच्चे वेस्टिंग (लंबाई के हिसाब से औसत से कम वजन) का शिकार थे  (WHZ <-2 SD अर्थात जिनका लंबाई के हिसाब से कम वजन है)

• वेस्टिंग, या लंबाई के हिसाब से कम वजन होना, तीव्र कुपोषण का एक संकेत है और तेजी से वजन गिरने या वजन न बढ़ने का मुख्य कारण पर्याप्त पोषण न मिल पाना है. उन बच्चों को वेस्टिड कहा जाता है जिनका वजन लंबाई के हिसाब से दो मानक अंकों से कम है (<-2SD) WHO बाल विकास मानक माध्य (WHO, 2009). पर्याप्त भोजन उपलब्ध न होने या बीमारी के हालिया प्रकरण की वजह से वजन कम होने की वजह से बच्चे वेस्टिंग का शिकार होते हैं.

• वेस्टिंग (20 प्रतिशत से अधिक या इसके बराबर) का उच्च दर वाले राज्यों में मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और झारखंड शामिल थे. वहीं सबसे कम वेस्टिंग के शिकार हुए राज्य मणिपुर, मिजोरम और उत्तराखंड (प्रत्येक 6 प्रतिशत) थे.

• सबसे अधिक अमीर आबादी (13 प्रतिशत) की तुलना में सबसे गरीब आबादी में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों का वेस्टिंग दर (21 प्रतिशत) था.

• पांच वर्ष से कम आयु के 33 प्रतिशत बच्चों में कम वजन पाया गया (WAZ <-2 SD अर्थात जिनका आयु के हिसाब से कम वजन है).

• कम वजन या उम्र के हिसाब से कम वजन होना, एक समग्र सूचकांक का संकेतक है जो तीव्र कुपोषण और लंबे समय से कुपोषित दोनों प्रकार के कुपोषणों की वजह से होता है. उन बच्चों को कम वजन के रूप में परिभाषित किया जाता है जिनका वजन-आयु के हिसाब से दो मानक अंको से कम होता है. (<-2SD) WHO बाल विकास मानक माध्य (WHO, 2009)

• भारत के उत्तर-पूर्व में कई राज्य, जैसे कि मिजोरम, सिक्किम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड के बच्चे सबसे कम अंडरवेट (16 प्रतिशत से कम या बराबर) पाए गए.

•  सबसे ज्यादा अंडरवेट का शिकार हुए बच्चे (39 प्रतिशत से अधिक) बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और झारखंड से थे. ग्रामीण क्षेत्रों (36 प्रतिशत) में शहरी क्षेत्रों (26 प्रतिशत) की तुलना में ज्यादा बच्चे अंडरवेट थे.

•  अनुसूचित जातियों (36 प्रतिशत), अन्य पिछड़े वर्गों (33 प्रतिशत), और अन्य समूहों (27 प्रतिशत) की तुलना में अनुसूचित जनजातियों में सबसे अधिक अंडरवेट बच्चे (42 प्रतिशत) पाए गए.

• सबसे गरीब तबके के पांच से कम आयु के अंडरवेट बच्चों (48प्रतिशत)की संख्या अमीर तबके के बच्चों(19 प्रतिशत) से दुगने से भी ज्यादा थी.  (48 प्रतिशत बनाम 19 प्रतिशत)

• मध्य-ऊपरी बांह परिधि (MUAC-for-age <-2 SD) द्वारा मापने पर 6-59 महीने के 11 प्रतिशत बच्चे पूर्ण रूप से कुपोषित थे.

• (MUAC <125mm) के अनुसार 6–59 महीने के 5 प्रतिशत बच्चे पूर्ण कुपोषित थे.

• MUAC के अनुसार बच्चों में तीव्र कुपोषण  (7 प्रतिशत से अधिक या बराबर) वाले राज्य जम्मू और कश्मीर, उत्तर प्रदेश, मेघालय, असम और नागालैंड थे. ऐब्सल्यूट MUAC (MUAC <125 मिमी) के अनुसार तीव्र कुपोषण के शिकार हुए बच्चे सबसे कम (1 प्रतिशत से कम या बराबर) उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश से थे.

• पांच वर्ष से कम आयु के 2 प्रतिशत बच्चे अधिक वजन वाले या मोटापे का शिकार (WHZ> +2 SD) थे.

• अधिक वजन और मोटापा, शरीर के वजन को प्रतिबिंबित करते हैं जो कि दी गई लंबाई के हिसाब से स्वस्थ वजन माना जाता है. पांच वर्ष से कम उम्र के उन बच्चों को अधिक वजन या मोटे के रूप में परिभाषित किया जाता है जिनका वजन लंबाई के हिसाब से WHO चाइल्ड ग्रोथ स्टैंडर्ड्स मेडियन (WHO, 2010) के दो मानक अंकों (> + 2SD) से अधिक है.

• पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों का वजन ट्राइसेप्स स्किनफोल्ड मोटाई (TSFT-for-age> +2 SD) द्वारा मापा गया था, जिसमें 1 प्रतिशत बच्चे मोटापे का शिकार निकले.

• टीएसएफटी के आंकड़ों के अनुसार सबसे अधिक मोटापे का शिकार (4 प्रतिशत से अधिक या उससे अधिक) मिजोरम, त्रिपुरा और उत्तराखंड के बच्चे थे.

• 1 से 4 वर्ष के 2 प्रतिशत बच्चे मोटापे का शिकार मिले, जिन्हें सबस्कुलर स्किनफोल्ड मोटाई (SSFT-for-age> + 2 SD) द्वारा मापा गया था.

• SSFT द्वारा मापे गए, मोटापे के शिकार बच्चे (5 प्रतिशत से अधिक या उससे अधिक) सबसे अधिक आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मिजोरम, त्रिपुरा और उत्तराखंड के थे.

• एसएसएफटी के अनुसार सामाजिक-आर्थिक स्थिति के हिसाब से अमीर तबके के 3 प्रतिशत और सबसे गरीब तबके के 1 प्रतिशत बच्चे मोटापे के शिकार थे.

 

स्कूली बच्चों में कुपोषण (5-9 वर्ष)

• स्कूली उम्र (5-9 वर्ष) के 22 प्रतिशत बच्चे स्टंटिंग (उम्र के हिसाब से कद में छोटे) का शिकार थे. (HAZ <-2 SD)

• 5 से 9 वर्ष की आयु के बच्चे स्टंटिंग के सबसे कम शिकार तमिलनाडु में सबसे कम (10 प्रतिशत) और केरल (11 प्रतिशत) में थे और मेघालय में सर्वाधिक (34 प्रतिशत) थे.

• 10 प्रतिशत स्कूली बच्चों का वजन कम (अंडरवेट) था. (WAZ <-2 SD)

• अरुणाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, मणिपुर और सिक्किम में सबसे कम (17 प्रतिशत) और झारखंड में सबसे अधिक (45 प्रतिशत) बच्चे अंडरवेट (कम वजन) के शिकार थे.

• स्कूली उम्र के 23 प्रतिशत बच्चे मरियल यानी पतले थे (BMI-for-age <-2 SD; BMI का अर्थ है बॉडी मास इंडेक्स)

• कम बीएमआई के प्रचलन में एक लिंग अंतर देखा गया, जिसमें मरियल लड़कियों की तुलना में मरियल लड़कों की संख्या अधिक है, दोनों (5-9 साल) के बीच 26 प्रतिशत लड़कों की तुलना में 20 प्रतिशत लड़कियां पतली हैं.

• 4 प्रतिशत स्कूली बच्चे अधिक वजन वाले या मोटापे के शिकार थे. (BMI-for-age> +1 SD)

• बच्चों और किशोरों (5-19 वर्ष), अधिक वजन और मोटापे को बीएमआई-फॉर-एज> + 1SD और WHO चाइल्ड ग्रोथ स्टैंडर्ड्स मेडियन (WHO, 2007) के ऊपर 2SD के रूप में परिभाषित किया गया है.

• टीएसएफटी (TSFT-for-age> +1 SD) द्वारा मापने पर स्कूली आयु के 2 प्रतिशत बच्चे मोटापे का शिकार मिले. 

• SSFT (SSFT-for-age> +1 SD) द्वारा मापने पर 8 प्रतिशत स्कूली बच्चे मोटापे का शिकार पाए गए.

• स्कूली बच्चों में 2 प्रतिशत बच्चे पेट के मोटापे का शिकार थे.(कमर की परिधि-आयु- +1 एसडी)

 

किशोरों में कुपोषण (10-19 वर्ष)

• 24 प्रतिशत किशोर उम्र के हिसाब से पतले थे. (BMI-for-age <-2 SD)

• 5 प्रतिशत किशोर उम्र के हिसाब से अधिक वजन वाले या मोटे थे (BMI-for-age> +1 SD)

• टीएसएफटी (TSFT-for-age> +1 SD) द्वारा मापे जाने पर 4 प्रतिशत किशोर अधिक वजन वाले या मोटे पाए गए.

• SSFT (SSFT-for-age> +1 SD) द्वारा मापे जाने पर 6 प्रतिशत किशोर अधिक वजन वाले या मोटे पाए गए.

• 2 प्रतिशत किशोर पेट के मोटापे के शिकार थे. (कमर की परिधि-आयु- +1 एसडी) 

 

एनीमिया और आयरन की कमी

• छोटे बच्चों (0-4 वर्ष) में 41 प्रतिशत, स्कूली बच्चों (5-9 वर्ष) में 24 प्रतिशत और किशोरों (10-19) में 28 प्रतिशत एनीमिक पाए गए.

• दो साल से कम उम्र के बच्चों में एनीमिया सबसे अधिक प्रचलित था.

•  किशोर अवस्था में लड़कियों(40 प्रतिशत) में लड़कों (18 प्रतिशत) के मुकाबले एनीमिया का अधिक प्रचलन था.

• 27 राज्यों में प्री-स्कूल बच्चों(0-4 वर्ष), 15 राज्यों में स्कूल-आयु के बच्चों (5-9 वर्ष) और 20 राज्यों में किशोरों (10-19 वर्ष) के बीच एनीमिया एक मध्यम या गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या थी.

• 0-4 वर्ष आयु के 32 प्रतिशत बच्चों, स्कूली (5-9 वर्ष) आयु के 17 प्रतिशत बच्चों और 22 प्रतिशत किशोरों (10-19 वर्ष) में आयरन (लोहे) की कमी थी. (कम सीरम फेरिटिन)

•  10-19 वर्ष आयु के लड़कों (12 प्रतिशत) की तुलना में लड़कियों (31 प्रतिशत) में लोहे की कमी अधिक मात्रा थे.

• शहरी क्षेत्रों में बच्चों और किशोरों में उनके ग्रामीण समकक्षों की तुलना में लोहे की कमी अधिक मात्रा में थी.

 

माइक्रोन्यूट्रीएंट्स

• विटामिन ए की कमी की व्यापकता प्री-स्कूल बच्चों में 18 प्रतिशत, स्कूली बच्चों में 22 प्रतिशत और किशोरों में 16 प्रतिशत थी.

• प्री-स्कूल बच्चों में 14 प्रतिशत, स्कूल-आयु वर्ग के 18 प्रतिशत बच्चों और 24 प्रतिशत किशोरों में विटामिन डी की कमी पाई गई.

• प्री-स्कूली बच्चों में 19 प्रतिशत, स्कूली बच्चों में 17 प्रतिशत और 32 प्रतिशत किशोरों में जिंक की कमी पाई गई.

• विटामिन बी12 की कमी की व्यापकता प्री-स्कूल के बच्चों में 14 प्रतिशत, स्कूल-आयु के बच्चों में 17 प्रतिशत और किशोरों में 31 प्रतिशत थी.

• प्री-स्कूल के बच्चों में से लगभग एक-चौथाई (23 प्रतिशत), स्कूली आयु वर्ग के 28 प्रतिशत बच्चों और 37 प्रतिशत किशोरों में फोलेट की कमी पाई गई.

• पर्याप्त आयोडीन की स्थिति (औसत यूरीनरी आयोडीन की सांद्रता 100 /g / L से अधिक या 300 µg / L से कम या बराबर) तीनों आयु समूहों में पाई गई. प्री-स्कूल के बच्चों में 213 /g / L, स्कूली बच्चों में 175 µg / L और किशोरों के बीच 173 /g / L थी.

• तमिलनाडु को छोड़कर सभी राज्यों में बच्चों और किशोरों में यूरिनरी आयोडीन की मात्रा का पर्याप्त स्तर था. तमिलनाडु के अनुमान से पता चला कि यूरिनरी आयोडीन की सघनता अतिरिक्त सेवन की कम सीमा पर थी (मध्य ~ 320 Lg / showed)

 

गैर-संचारी रोग

• भारत में 5 से 9 वर्ष और किशोर (10–19 वर्ष) उम्र के बच्चों में गैर-संचारी रोगों का खतरा बढ़ रहा है.

• दस में से एक स्कूली उम्र के बच्चों और किशोरों में प्लाज्मा ग्लूकोज> 100 मिलीग्राम / डीएल और 126 मिलीग्राम / डीएल के बराबर या उससे कम ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन (एचबीए 1 सी) 5.7 प्रतिशत और 6.4 प्रतिशत के साथ शुरूआती मधुमेह (pre-diabetic) था

• स्कूली बच्चों और किशोरों में एक प्रतिशत फासटिंग प्लाज्मा ग्लूकोज> 126 मिलीग्राम / डीएल मधुमेह से ग्रसित थे.

• तीन प्रतिशत स्कूली बच्चों और 4 प्रतिशत किशोरों में हाई टोटल कोलेस्ट्रॉल (200 मिलीग्राम / डीएल से अधिक या बराबर) और उच्च कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एलडीएल) (130 मिलीग्राम / डीएल से अधिक या बराबर) था.

• स्कूली बच्चों के एक-चौथाई (26 प्रतिशत) और 28 प्रतिशत किशोरों में उच्च-घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एचडीएल) (<40 mg / dl) पाए गए.

• स्कूली उम्र के बच्चों में से एक तिहाई (34 प्रतिशत) (100 मिलीग्राम / डीएल से अधिक) और 16 प्रतिशत किशोरों (130 मिलीग्राम / डीएल से अधिक या उससे अधिक) में हाई सीरम ट्राइग्लिसराइड्स पाए गए.

• स्कूली उम्र के बच्चों और किशोरों में सात प्रतिशत क्रोनिक किडनी रोग (सीरम क्रिएटिनिन> 0.7 मिलीग्राम / डीएल के लिए 5-12 साल और> 1.0 मिलीग्राम / डीएल 13 वर्ष से अधिक या बराबर) के जोखिम से ग्रसित थे.

• पांच प्रतिशत किशोरों को उच्च रक्तचाप (सिस्टोलिक रक्तचाप> 139 mmHg या डायस्टोलिक रक्तचाप> 89 mmHg) का शिकार पाया गया.

 

 


Rural Expert


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close