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खेतिहर संकट | बेरोजगारी
बेरोजगारी

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राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण यानी नेशनल सैंपल सर्वे की भारत में रोजगार और बेरोजगारी की स्थिति पर केंद्रित ६२ वें दौर की गणना के अनुसार-

  • साल १९९३-९४ से तुलना करें तो एक दशक बाद यानी २००५-०६ में बेरोजगारी की दर में प्रतिशत पैमाने पर एक अंक की बढो़त्तरी हुई।शहरी इलाके में रोजगारयाफ्ता महिलाओं के मामले में स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया।
  • ग्रामीण इलाके में साल २००४-०५ और २००५-०६ के बीच वर्क पार्टिसिपेशन रेट,पुरूषों के मामले में ५५ फीसदी पर स्थिर रहा जबकि महिलाओं के मामले में इसमें प्रतिशत पैमाने पर २ अंको की कमी आयी।एक साल के अंदर महिलाओं के मामले में वर्क पार्टिसिपेशन रेट ३३ फीसदी से घटकर ३१ फीसदी पर आ गया।
  • ग्रामीण इलाके में, स्वरोजगार में लगे पुरूषों का अनुपात साल १९८३ में ६१ फीसदी था जबकि दो दशक बाद साल २००५-०६ में यह अनुपात घटकर ५७ फीसदी रह गया। स्वरोजगार में लगी महिलाओं के मामले में स्थिरता रही।साल १९८३ में स्वरोजगार में लगी महिलाओं का अनुपात ६२ फीसदी था और २००५-०६ में यही अनुपात कायम रहा।
  • असंगठित क्षेत्र को आधार माने तो ग्रामीण इलाके में ३५ फीसदी और शहरी इलाके में १८ फीसदी कार्य-दिवसों को महिलाओं को रोजगार नहीं मिला।ग्रामीण इलाके में ११ फीसदी और शहरी इलाके में ५ फीसदी कार्य-दिवसों में पुरूषों को रोजगार नहीं मिला।
  • ग्रामीण इलाके में अर्थव्यवस्था के द्वितीयक क्षेत्र (खनन और खादान की खुली कटाई समेत) में काम करने वाले पुरूषों के अनुपात में बढोत्तरी हुई है।१९८३ में अर्थव्यवस्था के द्वितीयक क्षेत्र (खनन और खादान की खुली कटाई समेत) में काम करने वाले पुरूषों का अनुपात १० फीसदी था जो साल २००५-०६ में बढ़कर १७ फीसदी हो गया।महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा इस अवधि में ७ फीसदी से बढ़कर १२ फीसदी पर पहुंच गया।
  • ग्रामीण इलाके में १५ साल और उससे ऊपर की उम्र के केवल ५ फीसदी लोगों को लोक-निर्माण के हलके में काम हासिल है।इस आयु वर्ग के ७ फीसदी लोग काम की तलाश में हैं लेकिन उन्हें काम नहीं मिलता जबकि ८८ फीसदी लोक-निर्माण के कार्यो में रोजगार की तलाश भी नहीं करते।अगर लोक-निर्माण के कार्यों में ग्रामीण इलाके के पुरूषों को हासिल रोजगार के लिहाज से इस आंकड़े को देखें तो केवल ६ फीसदी पुरूषों को रोजगार हासिल है,८ फीसदी लोक-निर्माण के कार्यों में रोजगार खोजते हैं लेकिन उन्हें हासिल नहीं होता जबकि ८५ फीसदी लोक-निर्माण के कार्यों में रोजगार की तलाश तक नहीं करते।महिलाओं के मामले में यही आंकड़ा क्रमशः ३,, और ९१ फीसदी का है।
  • लोक-निर्माण के अंतर्गत आने वाले कामों में रोजगार पाने वाले व्यक्तियों का अनुपात प्रति व्यक्ति मासिक व्यय (एमपीसीई-मंथली पर कैपिटा एक्पेंडिचर) की बढ़ोत्तरी के साथ घटा है।यह बात स्त्री और पुरूष दोनों के मामले में देखी जा सकती है।प्रति व्यक्ति मासिक व्यय यानी एमपीसीई के सबसे ऊंचले दर्जे (६९० रूपये और उससे ज्यादा) में आने महज २ फीसदी पुरूषों को लोक-निर्माण के कार्यों में रोजगार हासिल था जबकि एमपीसीई के सबसे निचले दर्जे(३२० रूपये और उससे कम) के ९ फीसदी पुरूषों को, यानी एमपीसीई के ऊपरले दर्जे की तुलना में एमपीसीई के निचले दर्जे के लगभग ५ गुना ज्यादा पुरूषों को लोक-निर्माण के कामों में रोजगार हासिल था।महिलाओं के मामले में यही आंकड़ा एमपीसीई के ऊपरले दर्जे में १ फीसदी और एमपीसीई के निचले दर्जे में ४ फीसदी का है,यानी दोनों के बीच का अंतर ४ गुना है।
  • लोक-निर्माण के कार्यों में पिछले ३६५ दिनों (साल २००५-०६) स्त्री और पुरूषों को लोक-निर्माँण के काम औसतन क्रमशः १८ और १७ कार्यदिवसों को रोजगार हासिल हुआ।पिछले ३६५ दिनों (साल २००५-०६) में एमपीसीई के ऊपरले दर्जे (६९० रूपये और उससे ज्यादा) में आने वाले पुरूषों को सबसे ज्यादा कार्यदिवसों (२४ दिन) को रोजगार हासिल हुआ जबकि इसी अवधि में एमपीसीई के बिचले दर्जे (५१०-६९० रूपये) की महिलाओं को लोक-निर्माण के कार्यों में सबसे ज्यादा कार्यदिवसों (२३ दिन) को रोजगार हासिल हुआ।




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