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खेतिहर संकट | बेरोजगारी
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What's Inside

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) से संबंधित वार्षिक रिपोर्ट उपरोक्त सभी संकेतकों पर डेटा प्रदान करती है. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा तैयार की गई तीसरी पीएलएफएस वार्षिक रिपोर्ट (जुलाई 2019-जून 2020) जुलाई 2021 में जारी की गई है. यह रिपोर्ट श्रम अर्थशास्त्रियों द्वारा 2020 के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की अवधि के दौरान बेरोजगारी की स्थिति और देश में आजीविका की असुरक्षा पर उपयोगी अंतर्दृष्टि प्रदान करने के संबंध में महत्वपूर्ण है. ऐसा इसलिए है क्योंकि पीएलएफएस पर हाल ही में जारी वार्षिक रिपोर्ट में जुलाई 2019 से जून 2020 तक की अवधि से संबंधित तस्वीर पेश करती है. यह रिपोर्ट देशव्यापी लॉकडाउन (लगभग 69 दिनों की) की अवधि के दौरान रोजगार-बेरोजगारी संकट की स्थिति पर प्रकाश डालती है.

पीएलएफएस 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट से पता चलता है कि सीडब्ल्यूएस में कामगारों (ग्रामीणशहरी और ग्रामीण+शहरी) को रोजगार में उनकी स्थिति के अनुसार तीन व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है. ये व्यापक श्रेणियां हैं: (i) स्वरोजगार; (ii) नियमित वेतन/वेतनभोगी कर्मचारीऔर (iii) आकस्मिक श्रम. 'सभी स्वरोजगारकी श्रेणी के अंतर्गतदो उप-श्रेणियाँ बनाई हैं अर्थात 'स्वपोषित श्रमिक और सभी नियोक्ता' - एक साथ संयुक्तऔर 'घरेलू कामकाज में अवैतनिक सहायक'. चार्ट-में रोजगार में स्थिति के आधार पर सीडब्ल्यूएस में श्रमिकों का वितरण प्रस्तुत किया गया है. स्व-नियोजित व्यक्तिजो बीमारी के कारण या अन्य कारणों से काम नहीं करते थेहालांकि उनके पास स्व-रोजगार का काम थाउन्हें 'सभी स्वरोजगार (पुरुष/महिला/ग्रामीण/शहरी/ग्रामीण+शहरी क्षेत्रों में व्यक्ति) श्रेणी के तहत शामिल किया गया है.इस प्रकार, 'सभी स्व-नियोजित (पुरुष/महिला/ग्रामीण/शहरी/ग्रामीण+शहरी क्षेत्रों में व्यक्ति)श्रेणी के तहत दिए गए अनुमान 'स्वपोषित श्रमिकोंसभी नियोक्ताऔर 'घरेलू उद्यम में अवैतनिक सहायकश्रेणियों के तहत अनुमानों के योग से अधिक होंगे. हमने स्व-नियोजित श्रमिकों के प्रतिशत हिस्से की गणना की हैजिनके पास घरेलू उद्यम में काम थालेकिन बीमारी या अन्य कारणों से काम नहीं किया.

राष्ट्रीय स्तर पर 'स्व-नियोजित श्रमिक (अर्थात ग्रामीण + शहरी व्यक्तियों) जो घरेलू उद्यम में काम करते थेलेकिन बीमारी या अन्य कारणों से काम नहीं कर पाएका प्रतिशत हिस्सा 1.4 प्रतिशत से गिरकर 2017-18 और 2018-19 के बीच 1.2 प्रतिशत हो गया. हालांकि, 2019-20 में यह आंकड़ा बढ़कर 3.4 प्रतिशत हो गयाजो 2017-18 के स्तर से अधिक था. 'ग्रामीण महिला', 'ग्रामीण व्यक्ति', 'शहरी पुरुष', 'ग्रामीण महिला', 'ग्रामीण व्यक्ति', 'शहरी पुरुष', शहरी महिला', 'शहरी व्यक्ति', 'ग्रामीण+शहरी पुरुषऔर 'ग्रामीण+शहरी महिला' 'स्व-नियोजित श्रमिकोंजो घरेलू उद्यम में काम करते थेलेकिन बीमारी या अन्य कारणों से काम नहीं कियाके प्रतिशत हिस्से से संबंधित एक समान प्रवृत्ति देखी गई है

  1. अपेक्षाकृत अधिक नियमित समय अंतराल पर श्रम बल के आंकड़ों की उपलब्धता की अहमियत को ध्‍यान में रखते हुए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने अप्रैल 2017 में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) का शुभारंभ किया. पीएलएफएस के मुख्‍यत: दो उद्देश्य हैं:
    वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सीडब्‍ल्‍यूएस) में केवल शहरी क्षेत्रों के लिए तीन माह के अल्‍पकालिक अंतराल पर प्रमुख रोजगार और बेरोजगारी संकेतकों (अर्थात श्रमिक-जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोजगारी दर) का अनुमान लगाना.

    प्रति वर्ष ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य स्थिति (पीएस + एसएस) और सीडब्‍ल्‍यूएस दोनों में रोजगार और बेरोजगारी संकेतकों का अनुमान लगाना.

    प्रथम वार्षिक रिपोर्ट (जुलाई 2017-जून 2018) दरअसल मई 2019 में जारी की गई थी जिसमें ग्रामीण एवं शहरी दोनों ही क्षेत्रों को कवर किया गया और जिसमें सामान्य स्थिति (पीएस + एसएस) तथा वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सीडब्‍ल्‍यूएस) दोनों में रोजगार व बेरोजगारी के सभी महत्वपूर्ण मापदंडों के अनुमान दिए गए. यह दूसरी वार्षिक रिपोर्ट है जिसे एनएसओ द्वारा जुलाई 2019 -जून 2020के दौरान किए गए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के आधार पर जारी किया जा रहा है.
    बी. पीएलएफएस के तहत नमूने की संरचना

    1- अर्थात शहरी क्षेत्रों में एक रोटेशनल पैनल नमूना संरचनाहै. इस रोटेशनल पैनल स्‍कीम में शहरी क्षेत्रों के प्रत्‍येक चयनित परिवार के यहां चार बार आगमन होता है. प्रथम आगमन के तय कार्यक्रम के अनुसार इसकी शुरुआत की जाती है और बाद में ‘पुनर्आगमन’ कार्यक्रम के अनुसार समय-समय पर तीन बार आगमन सुनिश्चित किया जाता है. शहरी क्षेत्र में प्रत्‍येक स्‍तर के भीतर एक पैनल के लिए नमूने दरअसल दो स्‍वतंत्र उप-नमूनों के रूप में लिए गए. रोटेशन योजना के तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि प्रथम चरण वाली नमूना इकाइयों (एफएसयू)[1] के 75 प्रतिशत का मिलान दो निरंतर आगमन के बीच अवश्‍य हो जाए. ग्रामीण नमूनों में कोई पुनर्आगमन नहीं हुआ. ग्रामीण क्षेत्रों के लिए, एक स्‍तर/उप-स्‍तर के लिए नमूने बेतरतीब ढंग से दो स्वतंत्र उप-नमूनों के रूप में लिए गए. ग्रामीण क्षेत्रों के लिए, सर्वेक्षण अवधि की प्रत्येक तिमाही में वार्षिक आवंटन के 25% एफएसयू को कवर किया गया.

    सी. नमूना लेने की विधि

    वार्षिक रिपोर्ट के लिए ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में जुलाई 2019- जून 2020के दौरान प्रथम दौरे या आगमन के लिए नमूने का आकार: जुलाई 2019- जून 2020 के दौरान अखिल भारतीय स्‍तर पर सर्वेक्षण के लिए आवंटित कुल 12800 एफएसयू (7024 गांव और 5776 शहरी फ्रेम सर्वे या यूएफएस ब्‍लॉक) में से कुल 12,569 एफएसयू (6,913 गांव और 5,656 शहरी ब्‍लॉक) का सर्वेक्षण पीएलएफएस कार्यक्रम के प्रचार के लिए किया जा सका. सर्वेक्षण में शामिल परिवारों की संख्‍या 1,00,480 (ग्रामीण क्षेत्रों में 55,291और शहरी क्षेत्रों में 45,189) थी. इसी तरह सर्वेक्षण में शामिल लोगों की संख्‍या 4,18,297(ग्रामीण क्षेत्रों में 2,40,231और शहरी क्षेत्रों में 1,78,066) थी.

    महत्‍वपूर्ण रोजगार एवं बेरोजगारी संकेतकों की अवधारणात्‍मक रूपरेखा : आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) में महत्‍वपूर्ण रोजगार एवं बेरोजगारी संकेतकों जैसे कि श्रम बल भागीदारी दरों (एलएफपीआर) कामगार-जनसंख्‍या अनुपात ( डब्‍ल्‍यूपीआर), बेरोजगारी दर (यूआर), इत्‍यादि के अनुमान दिए जाते हैं. इन संकेतकों को नीचे परिभाषित किया गया है:

    ए. श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर): एलएफपीआर को कुल आबादी में श्रम बल के अंतर्गत आने वाले व्‍यक्तियों (अर्थात कहीं कार्यरत या काम की तलाश में या काम के लिए उपलब्‍ध) के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है.

    बी. कामगार-जनसंख्‍या अनुपात (डब्‍ल्‍यूपीआर): डब्‍ल्‍यूपीआर को कुल आबादी में रोजगार प्राप्‍त व्‍यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है.

    सी. बेरोजगारी दर (यूआर) : इसे श्रम बल में शामिल कुल लोगों में बेरोजगार व्‍यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है.

    डी. कार्यकलाप की स्थिति- सामान्‍य स्थिति : किसी भी व्‍यक्ति के कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण निर्दिष्‍ट संदर्भ अवधि के दौरान उस व्‍यक्ति द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर किया जाता है. जब सर्वेक्षण की तारीख से ठीक पहले के 365 दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण किया जाता है तो इसे उस व्‍यक्ति के सामान्‍य कार्यकलाप की स्थिति के तौर पर जाना जाता है.

    ई. कार्यकलाप की स्थिति – वर्तमान साप्‍ताहिक स्थिति (सीडब्‍ल्‍यूएस) : जब सर्वेक्षण की तारीख से ठीक पहले के सात दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण किया जाता है तो इसे उस व्‍यक्ति की वर्तमान साप्‍ताहिक स्थिति (सीडब्‍ल्‍यूएस) के रूप में जाना जाता है.

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के तहत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा तैयार आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2019-20 (23 जुलाई, 2021 को जारी) की वार्षिक रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं (कृपया एक्सेस करने के लिए यहां और यहां क्लिक करें):

विवरण 1: सभी उम्र के व्यक्तियों के लिए पीएलएफएस, 2019-20 और पीएलएफएस, 2017-18 के दौरान सामान्य स्थिति (पीएस+एसएस)* में एलएफपीआरडब्‍ल्‍यूपीआर और यूआर (प्रतिशत में) 

 

अखिल भारतीय

दरें

ग्रामीण

शहरी

ग्रामीण + शहरी

पुरुष

महिला

व्यक्ति

पुरुष

महिला

व्यक्ति

पुरुष

महिला

व्यक्ति

(1)

(2)

(3)

(4)

(5)

(6)

(7)

(8)

(9)

(10)

पीएलएफएस 2019-20

एलएफपीआर

56.3

24.7

40.8

57.8

18.5

38.6

56.8

22.8

40.1

डब्‍ल्‍यूपीआर

53.8

24.0

39.2

54.1

16.8

35.9

53.9

21.8

38.2

यूआर

4.5

2.6

4.0

6.4

8.9

7.0

5.1

4.2

4.8

पीएलएफएस 2018-19

एलएफपीआर

55.1

19.7

37.7

56.7

16.1

36.9

55.6

18.6

37.5

डब्‍ल्‍यूपीआर

52.1

19.0

35.8

52.7

14.5

34.1

52.3

17.6

35.3

यूआर

5.6

3.5

5.0

7.1

9.9

7.7

6.0

5.2

5.8

पीएलएफएस 2017-18

एलएफपीआर

54.9

18.2

37.0

57.0

15.9

36.8

55.5

17.5

36.9

डब्‍ल्‍यूपीआर

51.7

17.5

35.0

53.0

14.2

33.9

52.1

16.5

34.7

यूआर

5.8

3.8

5.3

7.1

10.8

7.8

6.2

5.7

6.1

नोट: *(पीएस + एसएस) = (प्रमुख कार्यकलाप की स्थिति + सहायक आर्थिक कार्यकलाप की स्थिति)

प्रमुख कार्यकलाप की स्थिति –ऐसे कार्यकलाप की स्थिति जिस पर किसी व्‍यक्ति ने सर्वेक्षण की तिथि से ठीक पहले 365 दिनों के दौरान अपेक्षाकृत लंबा समय (अवधि संबंधी प्रमुख पैमाना) व्‍यतीत किया थाउसे उस व्‍यक्ति के सामान्‍य प्रमुख कार्यकलाप की स्थिति माना गया.

सहायक आर्थिक कार्यकलाप की स्थिति– ऐसे कार्यकलाप की स्थिति जिसमें किसी व्‍यक्ति ने अपने सामान्‍य प्रमुख कार्यकलाप के अलावा सर्वेक्षण की तिथि से ठीक पहले 365 दिनों की संदर्भ अवधि के दौरान 30 दिन या उससे अधिक समय तक कुछ आर्थिक गतिविधि की थीउसे उस व्‍यक्ति के सहायक आर्थिक कार्यकलाप की स्थिति माना गया.

बेरोज़गारी दर:

  • वित्तीय वर्ष 2019-20 में बेरोज़गारी दर गिरकर 4.8% तक पहुँच गई है, जबकि वर्ष 2018-19 में यह 5.8% और वर्ष 2017-18 में 6.1% पर थी.

कामगार जनसंख्या दर:

  • इसमें वर्ष 2018-19 में 35.3% और वर्ष 2017-18 में 34.7% की तुलना में वर्ष 2019-20 में सुधार हुआ है तथा यह 38.2% पर पहुँच गई है.

श्रम बल भागीदारी अनुपात:

  • वर्ष 2019-20 में यह पिछले दो वर्षों में क्रमशः 37.5% और 36.9% की तुलना में बढ़कर 40.1% हो गया है. अर्थव्यवस्था में श्रम बल भागीदारी अनुपातजितना अधिक होता है यह अर्थव्यवस्था के लिये उतना ही बेहतर होता है. 

लिंग आधारित बेरोज़गारी दर:

  • आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि वर्ष 2019-20 में पुरुष और महिला दोनों के लिये बेरोज़गारी दर गिरकर क्रमशः 5.1% और 4.2% पर पहुँच गई है, जो कि वर्ष 2018-19 में क्रमशः 6% और 5.2% पर थी.
    • वर्ष के दौरान कामगार जनसंख्या दरऔर श्रम बल भागीदारी अनुपातमें भी तुलनात्मक रूप से सुधार हुआ है.

 




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