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खेतिहर संकट | बेरोजगारी
बेरोजगारी

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What's Inside

टाटा इंस्टीट्यूट ऑव सोशल साइंसेज और एडको इंस्टीट्यूट,लंदन द्वारा तैयार द इंडिया लेबर मार्केट रिपोर्ट(२००८) में भारत में मौजूद बेरोजगारी और छुपी हुई बेरोजगारी की स्थिति के बारे में कहा गया है कि http://www.macroscan.org/anl/may09/pdf/Indian_Labour.pdf

 

 

· भारत में ग्रामीण इलाके के व्यक्ति की तुलना में शहरी इलाके के व्यक्ति के लिए बेरोजगारी की दर कहीं ज्यादा है।शहरी महिलाओं में बेरोजगारी की दर ९.२२ फीसदी है जबकि ग्रामीण महिलाओं में यह दर ७.३१ फीसदी है।

 

 

· बेरोजगारी की प्रकृति का आकलन राज्यवार करें तो पता चलेगा कि गोवा और केरला जैसे तुलनात्मक रूप से विकसित राज्यों में बेरोजगारी की दर कहीं ज्यादा है।गोवा में बेरोजगारी की दर ११.३९ फीसदी और केरल में ९.१३ फीसदी है।बेरोजगारी की न्यूनतम दर अपेक्षाकृत कम विकसित राज्यों मसलन उत्तरांचल(.४८ फीसदी) और छत्तीसगढ़(.७७ फीसदी) में है।

 

· दस से चौबीस साल के आयुवर्ग में सबसे ज्यादा लोग बेरोजगार हैं।इससे यह धारणा बलवती होती है कि भारत में युवाओं में बेरोजगारी बढ़ रही है।

 

· रिपोर्ट का आकलन है कि बेरोजगारी की दर और व्यक्ति के शिक्षा-स्तर में संबंध है।अगर व्यक्ति का शिक्षा-स्तर ज्यादा है तो बेरोजगारी की दर भी उसके लिए ज्यादा है।जिन व्यक्तियों ने माध्यमिक स्तर से ज्यादा ऊंची शिक्षा हासिल की है उनके बीच बेरोजगारी की दर इससे कम दर्जे शिक्षा हासिल करने वालों की तुलना में कहीं ज्यादा है।ग्रामीण और शहरी दोनों ही इलाकों में शिक्षित महिलाओं के बीच बेरोजगारी की दर सबसे ज्यादा है।

 

· छुपी हुई बेरोजगारी की स्थिति के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं के बीच छुपी हुई बेरोजगारी की स्थिति कहीं ज्यादा है और खासतौर पर यह बात ग्रामीण इलाके की महिलाओं पर लागू होती है।

 

· स्वरोजगार और दिहाड़ी मजदूरी में लगे लोगों के बीच छुपी हुई बेरोजगारी की स्थिति कहीं ज्यादा सघन है।इसकी तुलना में वेतनभोगी कर्मचारियों अथवा नियमित मजदूरी पर लगे लोगों के बीच छुपी हुई बेरोजगारी ना के बराबर है।

 

स्वरोजगार

स्वरोजगार में लगे लोगों की तादाद राज्यवार ३० फीसदी से लेकर ७० फीसदी तक है।आकलन से पता चलता है कि अपेक्षाकृत कम विकसित राज्य मसलन बिहार(६१ फीसदी),उत्तरप्रदेश(६९ फीसदी)राजस्थान(७० फीसदी)में स्वरोजगार में लगे लोगों की संख्या ज्यादा है।अपेक्षाकृत ज्यादा विकसित राज्यों मसलन केरल (४२ फीसदी),दिल्ली(३८ फीसदी) और गोवा में (३४ फीसदी) कम संख्या में लोग स्वरोजगार में लगे हैं।

 

स्वरोजगार में लगे लोगों में शहरी लोगों की संख्या कम और ग्रामीण लोगों की संख्या ज्यादा है।

 

स्वरोजगार में लगे लोगों में कम शिक्षा-स्तर वाली महिलाओं का अनुपात पुरूषों की अपेक्षा ज्यादा है।कुल मिलाकर देखें तो स्वरोजगार में लगे लोगों में अधिकांस कम शिक्षा-स्तर वाले हैं।

 

 

अगर स्वरोजगार में लगे लोगों की संख्या को अर्थव्यवस्था के क्षेत्रवार देखें तो मजर आएगा कि खेती में सबसे ज्यादा लोगों को स्वरोजगार हासिल है।इसका बाद नंबर आता है व्यापार का।खेती और व्यापार में कुल मिलाकर कुल तीन-चौथाई लोग स्वरोजगार में लगे हैं।

 

अनियमित यानी दिहाड़ी मजदूरी का बाजार

 

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के ६२ वें दौर की गणना को आधार मानकर ऊपर्युक्त रिपोर्ट में कहा गया है कि ३१ फीसदी रोजगार दिहाड़ी श्रम बाजार में हासिल है और इस श्रम बाजार में महिलाओं की प्रतिभागिता पुरूषों की तुलना में ज्यादा है।

 

दिहाड़ी श्रम बाजार में रोजगार हासिल करने वाले ग्रामीण स्त्री और पुरूष के आयु वर्ग में ज्यादा फर्क नहीं है जबकि दिहाड़ी पर खटने वाले शहरी इलाके के पुरूषों के मामले में बाल श्रमिकों (आयुवर्ग ५ से ९) की संख्या ज्यादा है।

 

दिहाड़ी श्रम बाजार में ३४ साल तक की उम्र के मजदूरों को रोजगार के कहीं ज्यादा अवसर उपलब्ध हैं।इस आयु के बाद दिहाड़ी श्रम बाजार में उनको हासिल रोजगार के अवसरों में कमी देखी गई है।

 

दिहाड़ी मजदूरी के बाजार में शिक्षा के बढ़ते स्तर के साथ प्रतिभागिता में कमी देखी जा सकती है।दिहाड़ी मजदूरों का अधिकतर हिस्सा या तो अशिक्षित है या फिर उसे प्राथमिक स्तर की शिक्षा हासिल हुई है।

 

खेती में दिहाड़ी मजदूरों की तादाद के ७० फीसदी हिस्से को रोजगार हासिल है।इसके बाद सबसे ज्यादा तादाद में दिहाड़ी मजदूर उद्योग और सेवा-क्षेत्र में लगे हैं।अपेक्षाकृत विकसित राज्यों मसलन महाराष्ट्र, कर्नाटक,तमिलनाडु और पंजाब में खेती में दिहाड़ी मजदूरों की तादाद कहीं ज्यादा है जबकि अपेक्षाकृत कम विकसित राज्यों मसलन राजस्थान,झारखंड,उत्तरप्रदेश और उत्तरांचल में उद्योग-क्षेत्र में दिहाड़ी मजदूरों की संख्या खेती में लगे दिहाड़ी मजदूरों की संख्या से ज्यादा है।

 

कम विकसित राज्यों में उद्योग क्षेत्र के अंदर विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) दिहाड़ी मजदूरों की संख्या ज्यादा है।कंस्ट्रक्शन के अंतर्गत रोजगार पाने वाले दिहाड़ी मजदूरों की संख्या भी कम विकसित राज्यों में अपेक्षाकृत ज्यादा है।

 

आबादी जो श्रमबाजार में प्रतिभागी नहीं है-

 

जो आबादी श्रमशक्ति में प्रतिभागी नहीं है उसमें महिलाओं की संख्या पुरूषों की तुलना में बहुत ज्यादा है।

 

ग्रामीण इलाके की महिलाओं की तुलना में शहरी इलाके की महिलाएं कहीं ज्यादा तादाद में श्रमबाजार से बाहर हैं।जहां अधिकांश राज्यों के ग्रामीण इलाके में ६० से ७० फीसदी महिलाएं श्रमबाजार से बाहरह हैं वहीं शहरी इलाकों की महिलाओं के बीच यह आंकड़ा ८० फीसदी का है।

 

२५ से ५९ साल के आयुवर्ग की महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा (४७ से ५७ फीसदी तक) श्रमबाजार से बाहर है जबकि इस आयुवर्ग के पुरूषों के बीच यह आंकड़ा तुलनात्मक रूप से ना के बराबर(१ से ९ फीसदी) बैठता है।इसके अतिरिक्त श्रमबाजार से बाहर रहने वाली महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाओं का है।स्नातक स्तर की शिक्षा प्राप्त लगभग ६८ फीसदी महिलाएं श्रमबाजार से बाहर हैं जबकि इसी शिक्षास्तर के १३ फीसदी पुरूष श्रमबाजार से बाहर हैं।स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा हासिल कर चुकी ५३ फीसदी महिलाएं श्रमबाजार से बाहर हैं जबकि इसी शिक्षास्तर के १० फीसदी पुरूष श्रमबाजार से बाहर हैं।

 

महिलाओं की एक बड़ी तादाद घरेलू कामकाज के कारण श्रमबाजार से बाहर है।२५ से २९ साल के कामकाजी आयुवर्ग में भी श्रमबाजार से बाहर रह जाने वाली महिलाओं की तादाद ६० फीसदी है।ये आंकड़े ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों की महिलाओं पर लागू होते हैं।

 

श्रमबाजार से बाहर रह जाने वाली महिलाओं की संख्या दिल्ली में सबसे ज्यादा(९२.१० फीसदी) है।इस मामले में छत्तीसगढ़ दूसरे पादान पर है जहां ८९.५० फीसदी महिलाएं श्रमबाजार से बाहर हैं।इस मामले में सबसे अच्छी स्थिति हिमाचल प्रदेश की है।वहां सिर्फ ५१.७० फीसदी महिलाएं श्रमबाजार से बाहर हैं।

 

 

शारीरिक रूप से विकलांग माने जाने वाले व्यक्तियों में ज्यादा तादाद (४० फीसदी) २५ से ४० साल के आयुवर्ग में आने वाले पुरूषों की है और ग्रामीण इलाके में यह आंकड़ा इससे भी ज्यादा का है।इस कोटि में आने वाले अधिकांश लोग अशिक्षित हैं।

 

 

 

  • जहां तक भीख मांगने वाले और यौनकर्मियों का सवाल है,उनकी १९ फीसदी आबादी ५ से ९ साल के आयुवर्ग की है जबकि इस कोटि में आने वाले ३५ फीसदी व्यक्ति ६० साल या उससे ज्यादा उम्र के हैं।इनमें अधिकतर अशिक्षित हैं।

 

 

 

अर्थव्यवस्था के उभरते हुए हलको में रोजगार और बेरोजगारी की स्थिति-

 

· अर्थव्यवस्था के उभरते हुए क्षेत्रों पर नजर डालें तो एक बड़ी तादाद लेबर मार्केट के रीटेल सेक्टर(लेबर मार्केट में इसका हिस्सा लगभग साढे़ ७ फीसदी है) में रोजगारयाफ्ता दीखेगी।अर्थव्यवस्था के इस सेक्टर में लेबर मार्केट का संगठित क्षेत्र भी शामिल है और असंगठित क्षेत्र भी।

 

·भू-निर्माण यानी कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री लेबर मार्केट का दूसरा बड़ा हिस्सा(.९ फीसदी) है।इस सेक्टर में सबसे ज्यादा रोजगार पुरूषों को हासिल है और इसका विस्तार शहरों में ज्यादा है।लगभग ८.७ फीसदी शहरी और ५ फीसदी ग्रामीण मजदूरों को इस सेक्टर में रोजगार हासिल है।

 

· परिवहन यानी ट्रान्सपोर्ट सेक्टर में पुरूष मजदूरो की तादाद ७.५ फीसदी है जबकि महिलाओं की ०.१ फीसदी।भारत के ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में ये बात देखी जा सकती है।

 

· ग्रामीण इलाके में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में रोजगार ना के बराबर हासिल है।अर्थव्यवस्था का यह क्षेत्र अपनी प्रकृति में शहरी है और इसमें पढ़े-लिखे तथा उच्चे कौशल वाले लोगों की जरूरत है।आईटी यानी सूचना प्रौद्योगिकी और सॉप्टवेयर के समान मीडिया और फार्मास्यूटिकल्स में भी रोजगार की स्थिति शहरी वर्चस्व की सूचना देती है।

· स्वास्थ्य सुविधाओं और हॉस्पिटेलिटी के सेक्टर में महिलाओं को बाकी की अपेक्षा कहीं ज्यादा रोजगार हासिल है।

 

· साल २००८ के अक्तूबर से दिसबंर के बीच खनन,सूती वस्त्र-उद्योग,धातुकर्म,रत्न और आभूषण उद्योग,ऑटोमोबाइल तथा बीपीओ-आईटी जैसे क्षेत्रों में हासिल रोजगार में १.०१ फीसदी की कमी आयी।नवंबर के महीने में इन क्षेत्रों में रोजगार सृजन की दर सबसे नीचे(.७४ फीसदी थी लेकिन साल २००९ के जनवरी में इन क्षेत्रों में रोजगार में १.०७ फीसदी का इजाफा हुआ।

 

· आईटी और बीपीओ को छोड़कर बाकी सभी सेक्टर में साल २००८ के अक्तूबर से दिसंबर के बीच रोजगार की दर में कमी आयी।सबसे ज्यादा गिरावट रत्न और आभूषण के सेक्टर में रही जबकि आईटी और बीपीओ में हासिल रोजगार की दर में इजाफा हुआ।

·

· कुल मिलाकर देखें तो साल २००८ के अक्तूबर से दिसंबर के बीच ठेके पर शारीरिक श्रम से रोजगार हासिल करने वाले मजदूरों को बेरोजगारी का कहीं ज्यादा सामना पड़ा जबकि नियमित आधार पर बहाल और मानसिक श्रम वाले कामों में लगे कामगारों को रोजगार के कहीं ज्यादा अवसर हासिल हुए।

 




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