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पर्यावरण | खेती पर असर
खेती पर असर

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 भारत में सूखा

 

  साल 1871 से लेकर साल 2002 तक भारत को 22 दफे भयंकर सूखे का सामना करना पडा। सूखे वाले साल रहे- 1873, 1877, 1899, 1901, 1904, 1905, 1911, 1918, 1920, 1941, 1951, 1965, 1966, 1968, 1972, 1974, 1979, 1982, 1985, 1986, 1987 और 2002।इसमें पाँच दफे अति भयंकर सूखे का सामना करना पडा। **

• देश का लगभग 68 फीसदी हिस्सा सूखे की आशंका वाला क्षेत्र है। सूखे के कारण वैकल्पिक आजीविका की तलाश में बड़े पैमाने पर आबादी का पलायन होता है। ***

• सूखे के कारण देश को कई समस्याओं का सामना करना पडा है, मसलन-(क) कृषि आधारित उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति में कमी।(ख) खेतिहर आमदनी घटने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में औद्योगिक और उपभोक्ता वस्तुओं की मांग में कमी।(ग) सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश की जाने वाली राशि को राहत कार्यों पर खर्च करने के लिए बाध्य होना।(घ) खाद्यान्न और पशुचारे की कमी के कारण छोटे और सीमांत किसानों की दुर्दशा। मिसाल के लिए, साल 2002 के सूखे में 18 राज्यों के 29 करोड़ 60 लाख दुधारु पशुओं में 15 करोड़ को पशुचारे की कमी का समाना करना पडा।पनबिजली के उत्पादन में 13.9 फीसदी की कमी आई और जरुरी वस्तुओं के मूल्य में बढ़ोतरी हुई।

(i) मेट्रोलॉजिकल ड्राऊट- उस स्थिति को कहते हैं जब किसी इलाके में बारिश औसत से बहुत कम हुई है।ऐसी सूरत में संभव है कि पूरे देश के स्तर पर तो मॉनसून सामान्य रहा हो मगर विभिन्न मेट्रोलॉजिकल जिलों और इलाकों में सामान्य से कम वर्षा दर्ज की गई हो।छोटे इलाकों में बारिश के स्तर को मापने के लिए मेट्रोलॉजिकल इलाके की सामान्य वर्षा के औसत को आधार बनाया जाता है-

क) अत्यधिक- सामान्य से 20 फीसदी या उससे ज्यादा
(ख) सामान्य-मेट्रोलॉजिकल इलाके की सामान्य वर्षा से 19 फीसदी तक की अधिक वर्षा की स्थिति
(ग) कम- सामान्य से 20 फीसदी कम
(घ) अत्यअल्प-सामान्य से 60 फीसदी या उससे ज्यादा की कमी।
(ii) हाइड्रोलॉजिकल ड्राऊट- ऐसी स्थिति में भूमि के सतह पर मौजूद जल की मात्रा में कमी नजर आती है। नदियों में जलप्रवाह कम हो जाता है, झील और तलाब आदि जलाशय सूखने लगते हैं।

(iii) एग्रीकल्चरल ड्राऊट- ऐसी स्थिति में खेती की जमीन में नमी की मात्रा कम होती है और इसका फसलों की बढ़वार और ऊपज पर विपरीत असर पड़ता है।साल 1987, 1979 और 1972 में भारत में इसी किस्म का सूखा खेती की ऊपज घटाने के लिए जिम्मेदार रहा।

(iv) सूखे का एक वर्गीकरण साल की एक निश्चित अवधि में होने वाली बारिश की घट-बढ़ की माप के आधार पर भी होता है। भारत के संदर्भ में यह अवधि अमूमन जुलाई-सितंबर की रखी जाती है जब दक्षिण-पश्चिम मानसून से बारिश होती है। साल 2009 में भारत में इस मानसून से एलपीए(लॉग पीरियड एवरेज) के मुकाबले 54 फीसदी कम बारिश हुई। देश के कुल 36 मेट्रोलॉजिकल सब-डिवीजनों में से 30 में कम या फिर अत्यल्प श्रेणी की बारिश हुई जबकि 6 में सामान्य या फिर अत्यधिक।

 • भारत सरकार द्वारा किसी इलाके को सूखाग्रस्त घोषित करने का कोई निश्चित प्रावधान नहीं है।राज्य सरकारों के पास अपने रिलीफ मैन्युअल होते हैं और उसी के अनुसार राज्य अपने किसी खास या सारे इलाके को सूखाग्रस्त घोषित करते हैं।

• साल 1967 में योजना आयोग के निर्देश पर पुणे स्थित इंडिया मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट की इकाइ के रुप में ड्राऊट रिसर्च यूनिट की स्थापना हुई। इंडिया मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट हर साल अपने 36 सब-डिवीजनों में हुई बारिश के आधार पर सुखाड़ की स्थिति की पहचान करता है।

• साल 1988 में भारत सरकार ने नेशनल सेंटर फॉर मीडियम रेंज वेदर फॉरकास्टिंग नाम से एक एकक के गठन की अनुमति दी। इस एकक का काम 3-10 दिन पहले मौसम की जानकारी मुहैया कराना है।

• अंतरिक्ष विज्ञान आधारित नेशनल एग्रीकल्चरल ड्राऊट एसेसमेंट एंड मॉनिटरिंग सिस्टम साल 1989 से संचालित हो रहा है। कृषि विभाग के अन्तर्गत काम करने वाला यह तंत्र अधिकतर राज्यों में जिलास्तर पर मौसम की वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध कराता है।

 




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