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पर्यावरण | खेती पर असर
खेती पर असर

खेती पर असर

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वेज ऑर नॉन वेज:इंडिया ऐट क्रासरोड ”, ब्राईटरग्रीन, नामक रिपोर्ट के मुख्य तथ्य- 
http://www.brightergreen.org/files/india_bg_pp_2011.pdf:

* जलवायु के बदलाव में पशुधन की भूमिका

•  ग्रीनहाऊस गैसों के सर्वाधिक उत्सर्जन के मामले में चीन, अमेरिका, यूरोपीय यूनियन और रुस के बाद भारत का स्थान(पांचवां) है, हालांकि प्रतिव्यक्ति ग्रीनहाऊस गैस उत्सर्जन की मात्रा अब भी भारत में बहुत कम(1.7 टन कार्बनडायआक्साईड-साल 2007) है।

ग्रीनहाऊस गैसों में मीथेन का उत्सर्जन विश्व के बाकी देशों की तुलना में भारत में सबसे ज्यादा होता हैI इसका कारण है, भारत में मौजूद गाय-भैंसों की विशाल संख्या।

साल 2007 में पशुधन सेक्टर ने 334 मिलियन टन CO2 eq. का उत्सर्जन किया।भारत में कृषिगत ग्रीनहाऊस गैस उत्सर्जन के मामले में चावल की खेती का योगदान कुल उत्सर्जन का  21 फीसदी यानी 70 मिलियन टन CO2 eq.

साल 2009 में भारत के स्पेस अप्लीकेशन सेंटर ने पशुधन से होने वाले मीथेन उत्सर्जन के बारे में एक देशव्यापी अध्ययन किया। इस अध्ययन के अनुसार साल 1994 से 2003 के बीच मीथेन के उत्सर्जन में 20 फीसदी(11.75 मिलियन मीट्रिक टन सालाना) की बढोत्तरी हुई है। इस उत्सर्जन में आगे के सालों में भी इजाफा हुआ होगा क्योंकि साल 2003 से 2007 के बीच गाय-भैंसों की तादाद 21 मिलियन बढ़ी है।

ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन को बढ़ाने वाली जीवनशैली के बारे में इंडियन एग्रीकल्चरल इंस्टीट्यूट में हुए शोध के मुताबित मांसाहारी आहार(इसमें बकरे आदि का मांस शामिल है) में ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन की ताकत शाकाहारी आहार की तुलना में 1.8 गुना ज्यादा होती है। अध्ययन का निष्कर्ष था कि खान-पान संबंधी आदतों को बदलने से ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन में कमी आ सकती है।

* जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

साल 2050 तक भारत में तापमान में 2.3 से 4.8 डग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो सकती है। इसका दुष्प्रभाव दूध देने वाले पशुओं पर पड़ेगा, उनकी दूध की मात्रा और प्रजनन-क्षमता घटेगी।

संकर प्रजाति की गायों पर तापमान की बढोतरी का असर ज्यादा होगा। तापमान बढ़ने और समुद्रतल के ऊँचा उठने से कृषि और चारागाह योग्य जमीन घटेगी। पशुओं में बीमारियां बढ़ेंगी।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑव मैनेजमेंट की शमा परवीन द्वारा किए गए एक शोध के मुताबिक शाकाहारी भोजन के लिए औसतन प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 2.6 क्यूबिक मीटर पानी की जरुरत होती है। अमेरिका में रहने वाला एक व्यक्ति जिसके भोजन में मांस, अंडा और दूध से बने पदार्थ ज्यादा होते हैं प्रतिदिन 5.4 क्यूबिक मीटर पानी की खपत करता है।

भारतीय भूभाग का तकरीबन 50 फीसदी हिस्सा सूखे की आशंका वाला है। खेती की सिंचाई और जलापूर्ति का 80 फीसदी मानसून पर निर्भर है।

साल 2030 तक भारत में पानी की जरुरत 1.5 ट्रिलियन क्यूबिक मीटर हो जाएगी। इसमें खेती के लिए 1.195 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी की जरुरत होगी। भारत में मौजूदा जलापूर्ति 740 बिलियन क्यूबिक मीटर सालाना है। नतीजतन नदी-बेसिन(गंगा और कृष्णा) पर भारी दबाव पड़ेगा और वे छोटे होंगे।

वन एवं पर्यावरण विभाग(भारत सरकार) के साल 2009 के एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पशुधन और खेती के कारणों से होने वाले प्रदूषण( पशुजन्य अवशिष्ट, खाद, कीटनाशक) से भूमिगत जल और सतह पर मौजूद जल दूषित होते हैं। भारत के भूतल पर मौजूद जल का 70 फीसदी हिस्सा इन कारणों से प्रदूषित है।

साल 2007 में मांस के उत्पादन के कारण 3.5 मिलियन टन पानी खराब हुआ। चीनी-उद्योग जितना पानी खराब करता है, यह मात्रा उससे 100 गुनी ज्यादा है जबकि रासायनिक खादों के उत्पादन के कारण खराब हुए पानी की मात्रा की तुलना में 150 गुना ज्यादा।

मांसाहार तथा दुग्धजन्य उत्पादों को तैयार करने में बिजली की बड़ी खपत होती है। भारत में बिजली की कमी है। देश के 40 फीसदी घर बिना बिजली के हैं।

 



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