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पर्यावरण | खेती पर असर
खेती पर असर

खेती पर असर

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जयंत साठे, पी आर शुक्ल, एन एच रवीन्द्रनाथ द्वारा प्रस्तुत अध्ययन - क्लाइमेट चेंज, सस्टेनेबल डेवलपमेंट एंड इंडिया- ग्लोबल एंड नेशनल कंसर्नस्, के अनुसार-
 

http://www.iisc.ernet.in/currsci/feb102006/314.pdf:

 

• जलवायु परिवर्तन के कारण हाइड्रोलॉजिकल चक्र में बदलाव आने की आशंका है।इससे भारत में सूखे और बाढ़ की स्थिति आने वाले सालों में और गंभीर होगी।साल में वर्षाविहीन दिनों की संख्या आगामी सालों में और बढ़ेगी।

• वैज्ञानिक गवेषणाओं से जाहिर होता है कि तापमान में बढ़ोतरी के साथ पैदावार की मात्रा में कमी आती।गौरतलब है कि अगर तेज तापमान बढोतरी के साथ कार्बन डायआक्साइड की मात्रा भी बढ़ रही है और इसका नकारात्मक असर पैदावार की मात्रा पर पड़ेगा क्योंकि फसल के तैयार होने की अवधि घट जाएगी।।

• आशंका है कि मलेरिया के प्रकोप का देश में विस्तार होगा और कई सूबे मलेरिया की चपेट में आयेंगे।देश के उत्तरी और पश्तिमी राज्यों में मलेरिया का प्रकोप पहले से ज्यादा बढ़ेगा। दक्षिण के राज्यों में हालात थोड़े सुधर सकते हैं।

• वैश्विक स्तर पर देखें तो लगभग 190 करोड़ हेक्टेयर जमीन अपक्षय का शिकार हो चुकी है।इसमें 50 करोड़ हेक्टेयर जमीन अफ्रीका और एशिया-पैसेफिक क्षेत्र की है जबकि 30 करोड़ हेक्टेयर जमीन लातिनी अमेरिका की। तापमान की बढ़ोतरी और पानी की कमी के कारण वातावरण में आ रहे बदलावों के मद्देनजर इससे ज्यादा भूमि आगामी सालों में अपक्षय का शिकार होगी।

• गौरतलब है कि वन, खेती, तटीय इलाके जैसे क्षेत्र जलवायु की प्रति संवेदनशील माने जाते हैं तथा प्राकृतिक संसाधन जैसे भूजल, मिट्टी जैवविविधता आदि पर पहले से ही सामाजिक-आर्थिक कारणों से दबाव बना हुआ है।जलवायु परिवर्तन से संसाधनों के अपक्षय की गति और तेज होने की आशंका है।

 



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