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भूख | गरीबी और असमानता
गरीबी और असमानता

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ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्युमन डेवल्पमेंट इनीसिएटिव (OPHI) और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा जारी ग्लोबल मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स 2019: इलुमिनेटिंग इनइक्वॉलिटी (जुलाई, 2019 में जारी) नामक रिपोर्ट के अनुसार, (देखने के लिए कृपया यहां और यहां क्लिक करें):

•2005-06 और 2015-16 में, यानी इन 10 वर्षों के दौरान, भारत का मल्टीडाइमेंशनल हेडकाउंट अनुपात (H) अर्थात बहुतेरे अभावों में जीवन यापन करने वाले लोगों (जो किसी आबादी के भीतर) का अनुपात 55.1 प्रतिशत से घटकर 27.9 प्रतिशत हो गया है.

• 2005-06 और 2015-16 के बीच, भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर में कई तरह के अभावों का सामना करने वाले गरीब लोगों की कुल संख्या 64.06 करोड़ से घटकर 36.95 करोड़ रह गई है, यानी पिछले एक दशक में 27.1 करोड़ लोग गरीबी से बाहर हुए हैं. हालांकि, बहुआयामी गरीबी से पीड़ित लोगों की जनसंख्या 2015-16 में 36.95 करोड़ थी, जोकि 42 लाख बढ़कर 2017 में 37.37 करोड़ हो गई है.

बहुआयामी गरीबी का सामना कर रहे लोगों के अभावों का औसत यानी गरीबी की तीव्रता (Intensity of poverty), साल 2005-06 और 2015-16 के बीच 51.3 प्रतिशत से घटकर 43.9 प्रतिशत हो गई है.

मल्टीडाइमेंशनल हेडकाउंट अनुपात (H) और गरीबी की तीव्रता (A) से तैयार होने वाला  देश का बहुआयामी गरीबी सूचकांक (मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स-MPI) साल 2005-06 और 2015-16 के बीच 0.283 से घटकर 0.123 हो गया है.

गंभीर बहुआयामी गरीबी से पीड़ित लोग यानी जिनका डेप्रिवेशन स्कोर 50 प्रतिशत या उससे अधिक है, का जनसंख्या अनुपात 8.8 प्रतिशत हैं. गंभीर अभावों के जोखिमों से पीड़ित लोग यानी जिनका डेप्रिवेशन स्कोर 20-33 प्रतिशत है, का जनसंख्या अनुपात 19.3 प्रतिशत है.

नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि राष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का जनसंख्या अनुपात 21.9 प्रतिशत है और क्रय शक्ति समानता (पीपीपी) के मामले में प्रति दिन 1.90 डॉलर से कम रहने वाले लोगों का जनसंख्या अनुपात 21.2 प्रतिशत है.

बहुआयामी गरीबी से पीड़ित और पोषण, खाना पकाने के ईंधन, स्वच्छता और आवास से वंचित लोगों का जनसंख्या प्रतिशत क्रमशः 21.2 प्रतिशत, 26.2 प्रतिशत, 24.6 प्रतिशत और 23.6 प्रतिशत हैं.

झारखंड में, 2005-06 और 2015-16 के बीच बहुआयामी गरीबी (एच) 74.9 प्रतिशत से घटकर 46.5 प्रतिशत रह गई. भारत ने संपत्ति, खाना पकाने के ईंधन, स्वच्छता और पोषण में जोरदार सुधार किया है.

भारत ने राष्ट्रीय स्तर पर सबसे स्पष्ट गरीबी पैटर्न का प्रदर्शन किया है: सबसे गरीब क्षेत्रों में बहुआयामी गरीबी निरपेक्ष रूप से सबसे तेजी घटी है. भारत में गरीबी में आई गिरावट के मामले में ग्रामीण क्षेत्रों ने शहरी क्षेत्रों के गरीबी विकास पैटर्न को पीछे छोड़ दिया है.

भारत में 2006 की तुलना में 2016 में 27.1 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी की जकड़ से मुक्त हुए हैं, जबकि 2004 और 2014 के बीच बांग्लादेश में बहुआयामी गरीबी से पीड़ित लोगों की संख्या 1.9 करोड़ घट गई है.

• 10 चुनिंदा देशों के लिए जिनमें समय के साथ परिवर्तनों का विश्लेषण किया गया, भारत और कंबोडिया ने अपनी एमपीआई वेल्यूज को सबसे तेजी से कम किया है और इससे इन देशों के सबसे गरीब समूह भी अछूते नहीं रहे हैं.

बांग्लादेश, कंबोडिया, हैती, भारत और पेरू में वयस्क गरीबी की तुलना में बाल गरीबी में तेजी से गिरावट आई है.

लैंगिक असमानता के संदर्भ में, दक्षिण एशिया में 9 प्रतिशत लड़कों की तुलना में 10.7 प्रतिशत लड़कियां स्कूल नहीं जा पाती हैं और एक गरीब परिवार में रहती हैं. भारत में, उन लड़कियों का प्रतिशत अधिक है जो लड़कों की तुलना में बहुत गरीब हैं और स्कूल नहीं जा पाती हैं. हालांकि, लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए भारत के आंकड़े दक्षिण एशियाई औसत से कम हैं.


 

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