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भूख | गरीबी और असमानता
गरीबी और असमानता

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बहुआयामी गरीबी सूचकांक विश्वस्तर पर गरीबी की दशा मापने का उपयोगी तरीका है. गरीबी मापने के परंपरागत तरीके में मुख्य रुप से आमदनी देखी जाती है और जो लोग प्रतिदिन 1.90 डॉलर से कम रकम कमाते हैं उन्हें गरीब मान लिया जाता है. इस परंपरागत तरीके से यह तो पता चलता है कि किसी देश या इलाके में प्रतिव्यक्ति आमदनी कितनी कम है लेकिन यह पता नहीं चलता कि कम आमदनी वाले लोग गरीबी की अलग-अलग स्थितियों का किन रुपों में अनुभव करते हैं.

बहुआयामी गरीबी सूचकांक(एमपीआई) गरीबी के आकलन में कहीं ज्यादा उपयोगी है. इससे पता चलता है कि सेहत, शिक्षा तथा जीवन-स्तर के लिहाज से कितने लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे आकलन के लिए एपीआई में 10 संकेतकों- पोषण, बाल-मृत्यु, स्कूली वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, साफ-सफाई, खाना पकाने के ईंधन, पेयजल, बिजली, आवास तथा संपदा की उपलब्धता का आकलन किया जाता है. अगर कोई व्यक्ति इन 10 संकेतकों में से कम से कम तिहाई संकेतकों पर वंचित पाया जाता है तो उसे बहुआयामी गरीबी का शिकार व्यक्ति माना जाता है. मिसाल के लिए ग्लोबल मल्टी डायमेंशनल पावर्टी इंडेक्स रिपोर्ट के तथ्य संकेत करते हैं कि भारत के लगभग सभी राज्य में कुपोषण बहुआयामी गरीबी के शिकार लोगों की संख्या बढ़ाने का सबसे ज्यादा जिम्मेवार है. इसका बाद नंबर है ऐसे घरों का जिनमें किसी भी सदस्य की शिक्षा छह साल से अधिक नहीं हुई.

ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्युमन डेवल्पमेंट इनीसिएटिव (OPHI) और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा जारी ग्लोबल मल्टीडायमेंशनल पावर्टी इंडेक्स (एमपीआई) 2018 के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं:  (रिपोर्ट देखने के लिए यहां क्लिक करें.)

भारत में साल 2005/6 से 2015/16 के बीच भारत में गरीबी की दर 55 प्रतिशत से घटकर 28 प्रतिशत हो गई है. एक दशक के भीतर लगभग 27 करोड़ 10 लाख लोग गरीबी की दशा से बाहर निकले हैं लेकिन बहुआयामी गरीबी (मल्टीडायमेंशनल पावर्टी) की दशा में पड़े लोगों की संख्या भारत में अब भी 36 करोड़ 40 लाख है. यह संख्या दुनिया के बाकी मुल्कों की तुलना में सबसे ज्यादा है.

भारत के बाद बहुआयामी गरीबी की दशा में पड़े लोगों की सबसे ज्यादा तादाद नाइजीरिया(9 करोड़ 70 लाख), इथियोपिया(8 करोड़ 60 लाख), पाकिस्तान(8 करोड़ 50 लाख) तथा बांग्लादेश(6 करोड़ 70 लाख) में है.

बहुआयामी गरीबी की दशा झेल रहे इन 36 करोड़ 40 लाख लोगों में एक तिहाई से ज्यादा (34.5 प्रतिशत) संख्या बच्चों की है. बहुआयामी गरीबी में पड़े इन 15 लाख 60 हजार बच्चों में एक चौथाई से ज्यादा (27.1 प्रतिशत) तादाद 10 साल से कम उम्र के बच्चों की है. 

दस साल से कम उम्र के बच्चों में बहुआयामी गरीबी की दशा बड़ी तेज गति से कम हुई है. साल 2005/6 में भारत में बहुआयामी गरीबी की दशा में पड़े दस साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या 29 करोड़ 20 लाख थी जो 2015/16 में घटकर 13 करोड़ 60 लाख रह गई है. बच्चों की तादाद में एक दशक के भीतर 47 प्रतिशत की कमी आई है. 

परंपरागत रुप से वंचित माने जाने वाले समूह जैसे ग्रामीण, अनसूचित जाति और जनजाति के लोग, मुस्लिम तथा बच्चे, रिपोर्ट के मुताबिक अब भी बहुआयामी गरीबी के सबसे ज्यादा शिकार लोगों में शुमार हैं. मिसाल के लिए अनुसूचित जनजाति के किसी भी समुदाय में बहुआयामी गरीबी के शिकार लोगों की तादाद लगभग 50 प्रतिशत है जबकि अगड़ी जाति में ऐसे लोगों की संख्या लगभग 15 प्रतिशत है.

• मुस्लिम समुदाय में हर तीसरा व्यक्ति बहुआयामी गरीबी का दंश झेल रहा है जबकि ईसाई समुदाय में हर छठा व्यक्ति बहुआयामी गरीबी की दशा में है. इसी तरह 10 साल से कम उम्र के हर पांच बच्चे में 2 बच्चे(यानि 41 प्रतिशत) बहुआयामी गरीबी झेल रहे हैं जबकि 18 से 60 साल की उम्र के लोगों में बहुआयामी गरीबी के शिकार लोगों की संख्या एक चौथाई से भी कम(24 प्रतिशत) है.

झारखंड में सबसे ज्यादा लोग बहुआयामी गरीबी के चंगुल से बाहर निकलने में कामयाब हुए हैं जबकि बिहार 2015/16 में भी सबसे ज्यादा गरीबों की तादाद वाला राज्य है. साल 2015/16 में बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश तथा मध्यप्रदेश में 19 करोड़ 60 लाख लोग बहुआयामी गरीबी के शिकार थे. दूसरे शब्दों में कहें तो भारत में मौजूद बहुआयामी गरीबी के शिकार लोगों की कुल संख्या (36 करोड़ 40 लाख) का लगभग 50 फीसद हिस्सा इन्हीं चार राज्यों में मौजूद है.

 वैश्विक स्तर पर बहुआयामी गरीबी के शिकार लोगों की संख्या 1 अरब 30 करोड़ है. रिपोर्ट में आकलन के लिए जिन 104 देशों को शामिल किया गया है उनकी कुल आबादी की तुलना के लिहाज से यह संख्या लगभग एक चौथाई है. बहुआयामी गरीबी के शिकार इन 1 अरब 30 करोड़ लोगों में लगभग 46 प्रतिशत भारी दरिद्रता की हालत में हैं और सेहत, पोषण, साफ-सफाई जैसे कई बुनियादी सुविधाएं की भारी कमी झेल रहे हैं.


 

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