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पर्यावरण | पानी और साफ-सफाई
पानी और साफ-सफाई

पानी और साफ-सफाई

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What's Inside

 
 
  • विश्व के कुल 1 अरब 10 करोड़ लोगों को साफ पेयल की सुविधा हासिल नहीं है। साफ पेयजल की सुविधा से वंचित ज्यादातर लोग एशिया में रहते हैं।
  • शौचालय की सुविधा के मामले में विकसित और विकासशील देशों के बीच खाई और भी गहरी है। 2 अरब 60 करोड़ लोगों यानी विकासशील देशों की आधी आबादी को बुनियादी साफ सफाई की भी सुविधा हासिल नहीं है।
  • बात साफ पेयजल की हो या बुनियादी साफ-सफाई की- इससे वंचित होने की स्थिति राजनीतिक है। इसे पानी की मौजूदगी से जोड़कर नहीं देखा जा सकता ।
  • विश्व में इतना पानी जरुर मौजूद है कि हरेक को खेती और उद्योग सहति घरेलू उपयोग के लिए हासिल हो सके। वास्तविकता यह है कि गरीब जनता संस्थागत तरीके से इस सुविधा से वंचित की जाती है। उन्हें संसाधनों पर वाजिब कानूनी हक नहीं मिलते और सरकारी नीतियां भी इस तरह की हैं कि गरीब इन सुविधाओं से वंचित होते हैं।
  • जिन 1 अरब 10 करोड़ लोगों को साफ पेयजल की सुविधा हासिल नहीं है उनमें से हरेक व्यक्ति रोजाना औसतन 5 लीटर पानी का उपयोग करता है जबकि इससे दस गुना पानी धनी मुल्कों में कोई व्यक्ति सिर्फ रोजाना शौचालय में फ्लश के लिए इस्तेमाल करता है। योरोप में प्रति व्यक्ति पानी का उपभोग रोजाना 200 लीटर है और अमेरिका में 400 लीटर।
  • अगर कोई एक व्यक्ति योरोप में अपने शौचालय में फ्लश चला रहा है या फिर अमेरिका में शावर कर रहा है तो वह विकासशील मुल्कों में झुग्गी में रहने वाले लाखों लोगों की तुलना में कहीं ज्यादा पानी का इस्तेमाल कर रहा है। विकसित मुल्कों में रोजाना जितना पानी सिर्फ नलकी की टोंटी की खराबी से टपक जाता है उतना भी पानी विश्व की एक अरब आबादी को रोजाना अपने इस्तेमाल के लिए हासिल नहीं होता।
  • पानी के कुल इस्तेमाल में घरेलू उपभोग में खर्च होने वाले पानी का हिस्सा बहुत कम है( लगभग 5 फीसदी)। लेकिन घरेलू उपभोग के लिहाज से भी विकसित और विकासशील मुल्कों के बीच स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता में भारी अंतर है।
  • एशिया , लातिनी अमेरिका और सहारीय अफ्रीका के शहरों में अमीर लोग सरकार द्वारा सस्ती कीमतों पर उपलब्ध करवाये जा रहे पानी का रोजाना सैकड़ों लीटर की तादाद में इस्तेमाल करते हैं जबकि इन्ही मुल्कों में ग्रामीण और झुग्गीवासी आबादी रोजाना 20 लीटर से भी कम पानी में अपना काम चलाने को मजबूर है।
  • भारत में पानी की किल्लत वाले क्षेत्रों में हालत ये है कि अगर धनी किसान अपने वाटरपंप से धरती से 24 घंटे पानी निकाल रहा है तो उसका पड़ोसी सीमांत किसान खेतों की सिंचाई के लिए बारिश की आस लगाता है।
  • विश्व में सालाना 10 लाख 80 हजार बच्चे डायरिया से मरते हैं यानी रोजाना 4900 बच्चे डायरिया से मर जाते हैं।  विश्व में सर्वाधिक बच्चे डायरिया और गंदगी की वजह से मरते हैं। सन् 1990 के दशक में सशस्त्र संघर्ष में जितने लोगों की मृत्यु हुई इससे छह गुना ज्यादा बच्चे सिर्फ साल 2004 में डायरिया और साफ सफाई की कमी से मरे।
  • हर साल 44 करोड़ 30 लाख स्कूली दिवस का नुकसान सिर्फ जलजनित बीमारियों के कारण होता है।
  • साल को कोई भी वक्त ले लीजिए विकासशील देशों में आधी जनसंख्या आपको जलजनित या फिर गंदगी से पैदा होने वाली एक ना एक बीमारी की चपेट में मिलेगी।
  • संकट पानी की कमी का हो या साफ सफाई की कमी से पैदा होने वाली बीमारियों का- हर हाल में इसका पहला शिकार गरीब ही होते हैं। जिस एक अरब आबादी को साफ पेयजल की सुविधा हासिल नहीं है उसमें हर तीन में से दो व्यक्ति रोजाना 2 डालर से कम में जीवन बसर करते हैं जबकि हर तीन में से एक आदमी रोजाना एक डालर से भी कम में अपना जीवन चलाता है।साफ सफाई की बुनियादी सुविधाओं से वंचित लोगों की तादाद विश्व में 66 करोड़ है और इन्हें रोजाना 2 डालर से कम की आमदनी पर अपना गुजर बसर करना पडता है।इनमें से तकरीबन 38 करोड़ तो एक डालर से भी कम में अपना बसर करने पर मजबूर हैं।
  • जिस परिवार के पास जितनी मात्रा में धन है उस परिवार को उतनी ही मात्रा में पानी और साफ सफाई की सुविधा भी हासिल है। आबादी का 20 फीसदी सबसे धनी हिस्सा पाइप द्वारा पहुंचाए जा रहे कुल पानी का 85 फीसदी हासिल करता है जबकि उसी आबादी का सबसे गरीब तबके के हिस्से में इस पानी का महज 20 फीसदी भाग आता है।
    असमानता सिर्फ सुविधाओं तक पहुंच के मामले में ही नहीं है। पूरे विकासशील देशों में एक विकृत नियम यह लागू होता है कि सबसे गरीब आदमी को ना सिर्फ पानी कम मिलता है बल्कि उसे इस पानी के लिए कीमत भी बहुत ज्यादा चुकानी पड़ती है।
  • जकार्ता और मनीला और नैरोबी की झुग्गियों में रहने वाले लोग प्रति लीटर पानी के लिए अपने ही शहरे के धनी लोगों की तुलना में 5-10 गुना ज्यादा कीमत चुकाते हैं। उनके द्वारा चुकायी कीमत लंदन और न्यूयार्क के उपभोक्ताओं से भी ज्यादा है।
  • ऊंची आमदनी वाले घर कम आमदनी वाले घरों की तुलना में ज्यादा पानी का इस्तेमाल करते हैं। भारत के मुंबई में महलों में रहने वाले झुग्गीवासियों की तुलना में 15 गुना ज्यादा पानी का इस्तेमाल करते हैं।
  • मौजूदा प्रगति को ध्यान में रखें तो सहारीय अफ्रीका पानी का पना लक्ष्य 2040 में पूरा करेगा और साफ सफाई का लक्ष्य 2070 में। साफ-सफाई के लक्ष्यों के मामले में दक्षिण एशिया समय से चार साल पीछे चल रहा है और अरब अमीरात के देश 27 साल पीछे हैं।
  • कुल 55 देश पानी की सुविधा मुहैया कराने के मामले में लक्ष्य से पीछे हैं और इन देशों के 23 करोड़ 40 लाख लोगों को अभी समुचित मात्रा में पानी हासिल नहीं होगा।
  • साफ सफाई की बुनियादी सुविधाए मुहैया कराने के मामले में कुल 74 देश पीछे हैं।  देशों की कुल 43 करोड़ आबादी साफ सफाई की बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित रहेगी।
  • अर्जेन्टीना से लेकर बोलविया तक और फिलीपिन्स से लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका तक यह विश्वास ध्वस्त हो चुका है कि निजी क्षेत्र के हाथ में पानी की आपूर्ति को छोड़ देने पर पानी के मामले में समानता आ सकेगी और उसकी आपूर्ति चुस्त-दुरुस्त हो सकेगी।
 


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