Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
सशक्तीकरण | जेंडर
जेंडर

जेंडर

Share this article Share this article

What's Inside


एक्शन एड और इन्टरनेशनल डेवेलपमेंट रिसर्च सेंटर द्वारा संयुक्त रुप से प्रस्तुत योजित परिवार नियोजित लिंग-मध्यप्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के कुछ जिलों में बालिकाओं के गिरते अनुपात पर एक रिपोर्ट नामक दस्तावेज(2009) के अनुसार-

  • २००१ की सबसे ताज़ा दशकीय जनगणना, जिसके जनसंख्या-परक बुनियादी आंक[ड़े  भी उपलब्ध हैं, बताती है कि देश में पुरुषों की तुलना में स्त्रियाँ साढे  तीन करोड  कम हैं.
  • पिछले दशक में, पहली बार भारत में पूरी आबादी के समग्र लिंग अनुपात में थोड़ा सा सुधार दिखाई दिया था - ९२७ से बढ कर ९३१ - जिसका मूल कारण था प्रौढ  स्त्रियों की बढती हुई जीवन-अवधि.
  • दूसरी तरफ २००१ की जनगणना बताती है कि अलग से देखने पर ० से ६ वर्ष के आयु-वर्ग में पूरे देश के स्तर परबाल लिंग अनुपात में बहुत भारी गिरावट आयी है.
  • इस जनगणना के अनुसार ६ वर्ष से ऊपर की आबादी में लिंग अनुपात ९२४ से बढ़कर ९३४ हो गया है, पर ०-६ आयु वर्ग में बाल लिंग अनुपात १९९१ से २००१ के बीच के दस वर्षों में ९४५ से घटकर ९२७ रह गया है.
  • एक दशक के अन्दर १८ अंकों की गिरावट के साथ बाल लिंग अनुपात इतिहास में पहली बार समग्र आबादी के लिंग अनुपात से नीचे आ गया है।
  • २००१ के आंकड़े बताते हैं कि भारत में सिर्फ चार ऐसे राज्य हैं (दक्षिण में केरल, और उत्तरपूर्व में सिक्किम, त्रिपुरा और मिजोरम) जहाँ यह गिरावट बढी नहीं है, हालाँकि यहाँ भी वयस्क लिंग अनुपात की तुलना में बाल लिंग अनुपात नीचा ही है.
  • २००१ की जनगणना के अनुसार घटते बाल लिंग अनुपात की यह प्रवृत्ति उन राज्यों में भी विराट आकार ले रही है जहाँ पहले कभी बालिका भ्रूण हत्या की प्रथा नहीं देखी गई
  • इसका अच्छा उदाहरण है हिमाचल प्रदेश जहाँ बाल लिंग अनुपात १९९१ में ९५१ था और २००१ में गिराकर ८९७ रह गया (५४ अंकों की गिरावट), उडीसा (१७ अंकों की गिरावट), बिहार (१५ अंकोंकी गिरावट).
  • इसके अलावा, अब यह प्रवृत्ति पहले की तरह सिर्फ़ कुछ समुदायों तक सीमित नहीं है. बहुत से अनुसूचित जाति समुदायों में बाल लिंग अनुपात लगातार गिर रहा है.
  • जिलों में जहाँ पहले शहरी केन्द्रों में ही प्रतिकूल लिंग अनुपात देखा जाता था, अब देहाती इलाके भी उनकी 'बराबरी' पर आ रहे हैं.
  • जो ग़रीबी के स्त्रीकरण (औरतों के बीच बढती साधनहीनता) और गरीब तबके  की औरतों और बालिकाओं की असमय मृत्यु की संभावना को
  • रेखांकित करते रहे हैं, उनके लिए यह तथ्य हतप्रभ कर देने वाला है कि १९९१ और २००१ के बीच जिन राज्यों में बाल लिंग अनुपात सबसे ज्यादा गिरा है वे आर्थिक रूप से सम्पन्नतर राज्य हैं.
  • इन राज्यों में हाल के सालों में साक्षरता दर ऊँची रही है, प्रजनन दर कम हुई है और छोटे परिवार की ओर रुझान बढा है.
  • तथ्य यह है कि पंजाब और हरियाणा में साक्षरता का स्तर तो ऊंचा हुआ ही है, स्त्री और पुरुष साक्षरता स्तरों के बीच अंतर भी कम हुआ है. फिर भी बाल लिंग अनुपात की दृष्टि से ये देश के सबसे ख़ाराब राज्यों में हैं, और गुजरात और महाराष्ट्र जैसे संपन्न राज्य भी इनके आसपास ही है.
  • दिल्ली, चंडीगढ और अहमदाबाद जैसे अमीर और आधुनिक शहरों में बाल लिंग अनुपात बहुत ही बुरा है
  • ०-६ आयु वर्ग में हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के बाल लिंग अनुपातों में बहुत ही नाटकीय और चिंताजनक पतन हुआ है
  • पंजाब और हरियाणा के इस मामले में ख़ाराब इतिहास को देखते हुए वहाँ की यह नई गिरावट इन राज्यों में विकास की प्रकृति के बारे में सवाल खडे  करती है. देखा जाए तो ऊँची स्त्री साक्षरता दर, शादी की अच्छी औसत आयु - ये दोनों विकास के महत्वपूर्ण लक्षण हैं
  • हिमाचल प्रदेश का लड़कियों और औरतों से भेदभाव के मामले में हर जगह और हर दौर में खराब इतिहास नहीं है लेकिन कांगडा जिले में बाल लिंग अनुपात में नाटकीय गिरावट हुई है।
  • मध्यप्रदेश और राजस्थान में बाल लिंग अनुपात कम रफ़्तार से गिरा है, बल्कि राजस्थान में कुल लिंग अनुपात में कुछ सुधार भी दिखाई देता है. दोनो राज्य अपेक्षाकृत पिछडे हुए हैं और बालिका के प्रति उपेक्षा और कभी कभार बालिका-हत्या के लिए भी जाने जाते हैं
  • रेखांकित करने लायक तथ्य यह है कि पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बाल लिंग अनुपात बहुत तेज़ी से गिरा है और इस दृष्टि से शहर तथा गाँव में बहुत कम भेद रह गया है.
  • सन १९९१ से २००१ के बीच प्रत्येक जिले में लिंग अनुपात और लिंग अनुपात में गिरावट आई हैं. अपने अपने राज्यों (बाल लिंग अनुपातों में हाल की गिरावट के अध्ययन के लिए निम्न लिंग अनुपात वाले ये राज्य चुने गए : उत्तर भारत से हरियाणा(रोहतक), पंजाब(फतेहगढसाहब) और हिमाचल प्रदेश(कांगड़ा),पश्चिम से राजस्थान(धौलपुर), तथा मध्य भारत से मध्यप्रदेश(मुरैना).में ये ज़िले न सिर्फ राज्य औसत से नीचे का बाल लिंग अनुपात दिखाते हैं बल्कि इनमें अनुपात की गिरावट की दर राज्य औसत से नीचे है
  • फतेहगढ  साहब और कांगडा में यह गिरावट क्रमशः १०८ और १०३ अंकों की है, जबकि रोहतक में यह ७७ अंक की है. मुरैना में अनुपात की गिरावट ४१ अंकों से हुई है, जबकि धौलपुर में गिरावट सबसे कम, १५ अंक, की है.
  • अगर शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अलग करके देखें तो मुरैना में शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में ४१ अंकों की गिरावट है, जबकि धौलपुर में यह गिरावट शहरी इलाकों में ही ज्यादा है.
  • दिलचस्प यह है कि कांगडा और फतेहगढ  साहब में शहरी इलाके  के बजाय ग्रामीण इलाके  में बाल लिंग अनुपात ज्यादा गिरा है, जो शहरीकृत होते हुए देहात में ग्रामीण-शहरी सम्मिलन का संकेत देता है.
  • रोहतक में शहरी इलाके में गिरावट ज्यादा है. यहाँ शहरीकरण तो तेजी से हो रहा है पर अभी असंतुलित बाल लिंग अनुपात में कांगडा और फतेहगढ साहब की 'टक्कर' का नहीं है।
  • १९७१ से १९९८-९९ के बीच की अवधि के आंकड़े बताते हैं कि सभी राज्यों में शादी की उम्र बढ ती गयी है. इस मामले में मध्यप्रदेश और राजस्थान पीछे हैं जहाँ यह उम्र १९ और १८ साल है.
  • पंजाब और हिमाचल में औसत उम्र २२ साल है, जबकि हरियाणा में यह २० साल है. हरियाणा में पुरुषों और स्त्रियों की विवाह की उम्र में अंतर सबसे ज् यादा है.
  • २००२-२००४ के रिप्रोडक्टिव एंड चाइल्ड हैल्थ  के आंकडों के अनुसार मध्यप्रदेश और राजस्थान में करीब आधी लड कियाँ शादी की कानूनी उम्र (१८ वर्ष) तक पहुँचने से पहले ही ब्याह दी जाती हैं.
  • जिन जिलों में सर्वेक्षण स्थल चुने गए हैं वहाँ यह आंकडा थोडा सा ऊंचा है. हरियाणा में २९ प्रतिशत लड कियाँ शादी की क ानूनी उम्र तक आने से पहले ब्याह दी जाती हैं; रोहतक जिले का आंकडा भी यही है.
  • फतेहगढ  साहब में जरूर केवल पाँच प्रतिशत लड कियाँ क कानूनी उम्र से पहले ब्याही जाती हैं, जो पंजाब के औसत (१० प्रतिशत) से आधा है।
  • मुरैना में १२ प्रतिशत ग्रामीण परिवारों में २ लड़के, १०.५ परिवारों में दो लड के-एक लडकी; और १५ प्रतिशत शहरी परिवारों में एम लडका-एक लडकी और १४.५ परिवारों में दो लडके-एक लडकी का परिदृश्य दिखाई देता है. दूसरे बडे और छोटे संयोजन भी नजर आते हैं.
  • धौलपुर में १० प्रतिशत ग्रामीण और शहरी परिवारों में एक लडका-एक लडकी और दो लडके-एक लडकी की वरीयता दिखने लगती है.
  • बाक़ी सभी अन्य स्थलों पर एक लड का-एक लडकी का मानदंड ज्यादा बडे पैमाने पर प्रचलन में आने लगा है (कांगडा के ३३ प्रतिशत ग्रामीण परिवार,
  • फतेहगढ साहब और रोहतक के २५ प्रतिशत ग्रामीण परिवार).
  • सभी स्थलों पर दृष्टि डालने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि सिर्फ़ दो बेटियों वाले परिवार तादाद में लगभग नगण्य हैं; मुरैना और धौलपुर में इनका अनुपात ३ प्रतिशत, शहरी कांगडा में ६ प्रतिशत,और फतेहगढ  साहब में सिर्फ  २ प्रतिशत है.
  • इस सब के अवलोकन से इस तरह की विरोधाभासी तस्वीर उभरती है : एक ओर तो ज्य़ादा से ज्यादा परिवार एक लड का/एक लडकी मानदंड पर चलने लगे हैं, लेकिन इनसे भी ज्यादा छोटे परिवार ऐसे हैं जिनमें लडके ज्यादा हैं और बहुत कम ऐसे परिवार हैं जहाँ सिर्फ बेटियाँ हैं.
  • ये ही वे संयोजन या समीकरण हैं जो बढते हुए पुंजातीयकरण और बाल लिंग अनुपात में विकृति के लिए जिम्मेदार हैं.
  • केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर हाल के वर्षों में महिला और बालिका की स्थिति में सुधार के लिए अनेक योजनाएं शुरू की गईं. हमारे सभी अध्ययन-स्थलों पर पाया गया कि कहीं भी किसी तरह की कोई सरकारी योजना न तो लागू हो रही है और न ही लोगों के बीच उनकी कोई भनक है.
  • पाया गया कि आँगनवाड़ी संभालती महिलाओं पर 'अच्छे नतीजे' दिखाने के लिए, खासकर लड के-लड कियों के अनुपात के सन्दर्भ में, रजिस्टर में फर्जी
  • इन्द्राज करने के लिए बहुत दबाव डाला जाता है

मसले जो समाधान के इन्तिजार में हैं-

 

 

  • जन स्वास्थ्य व चिकित्सा सुविधाओं का सभी क्षेत्रों में विस्तार और जन स्वास्थ्य कार्यक्रमों का पुनर्गठन : सभी स्थलों पर देखा गया कि जन स्वास्थ्य सुविधाएं ठप्प हैं या चरमरा रही हैं और अवाम की नजर में अच्छी स्वास्थ्य सेवा का मतलब पैसे से प्राप्त निजी चिकित्सा सेवा होता जा रहा है. गरीब इलाकों में इसके निहितार्थ स्पष्ट हैं (ऊँची बाल मरण दर,विशेषतः बालिका-मरण दर), पर अपेक्षाकृत संपन्न इलाकों में भी स्वास्थ्य की देखभाल महँगी होती जा रही है जिसका नतीजा है बारीक लिंग-आधारित भेदभाव
  • जन शिक्षा का विस्तार और सुधार : सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर गिरता गया है और प्राइवेट स्कूलों के माध्यम से शिक्षा की प्रतिष्ठा और कीमत बढती गई है. स्थिति यह है कि सिर्फ गरीब लोग और निचली जातियों के लोग ही सरकारी स्कूलों पर निर्भर रह गए हैं. स्कूली शिक्षा पर बढते खर्च के चलते बेटियों की शिक्षा बोझ को बढाती है. जन शिक्षा का इस तरह से पुनर्गठन किया जाना चाहिए कि वह वर्ग-जाति-और लिंग-आधारित मूलभूत विषमताओं को बढने न दे. यह काम तत्काल शुरू किया जाना चाहिए.
  • शादी की अनिवार्यता और माता-पिता तथा जाति-बिरादरी के नियंत्रण के चलते ही यह हुआ है कि हाल की कुछ मुक्तिकामी उपलब्धियों (अधिक शिक्षा, बेटियों की विरासत में हकदारी की दिशा में कानूनी सुधार, शादी की बढ़ती उम्र, और पॉपुलर कल्चर में प्रेम तथा यौनेच्छा के थोडे से इजहार को प्रोत्साहन) के विरुद्ध भीषण स्त्री-विरोधी लहर चल पडी है. अध्ययनकर्ताओं का विश्वास है कि विवाह के वर्तमान नियमों और रीति पर ज्यादा मजबूती से सवाल उठाए जाने चाहिएं.
  • बुढ़ापे में माँ-बाप की मदद और देखभाल का मसला एक बडा मसला है. आम तौर पर परिवार और खास तौर पर बेटे पर ही इसकी सारी जिम्मेदारी नहीं रहनी चाहिए, और इस मसले पर सामाजिक संस्थानों को आगे आने की जरूरत है.
  • स्थानीय डाक्टरों-कम्पाउन्डरों-नर्सों, सरकारी स्वास्थ्य सेवा अधिकारियों और प्राइवेट रेडीयोलाजिस्टों व स्त्रीरोग-विशेषज्ञों के बीच साँठ - गाँठ का उद्‌घाटन : इस अध्ययन के दौरान क्षुब्ध करने वाली खोज यह सामने आई कि सहायक नर्स-दाइयों (एएनएम) की दूसरे स्थानीय स्तर के निदान-गृहों और चिकित्सालयों और अनसे जुड़े लोगों से पक्की साँठ -गाँठ रहती है, और इसी वजह से लिंग-परीक्षण कराना इतना आसान हो जाता है।

 

 

 




Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close