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सशक्तीकरण | नरेगा और सोशल ऑडिट
नरेगा और सोशल ऑडिट

नरेगा और सोशल ऑडिट

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What's Inside

कंपट्रोलर एंड आँडिटर जेनरल आँव इंडिया द्वारा प्रस्तुत द पर्फार्मेंस ऑडिट ऑव द इम्पलीमेंटेशन ऑव नरेगा-2008 नामक दस्तावेज के अनुसार-

http://cag.gov.in/html/reports/civil/2008_PA11_nregacivil/
Exe-sum.pdf

 

· साल 2007 के मई-सितंबर महीने में नरेगा के कामकाज की परख के लिए एक निरीक्षण किया गया।यह निरीक्षण 200 जिलों में हुआ जहां नरेगा को शुरुआती तौर पर चलाया गया था। इस जांच के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने अनुरोध किया था ताकि पता चल सके कि नरेगा के अन्तर्गत जो प्रावधान किए गए हैं उनका अनुपालन राज्य सरकारों द्वारा सही रीति से हो रहा है या नहीं।

 

· मार्च 2007 की अवधि तक 12074 करोड़ की रकम इस योजना के लिए हासिल हुई थी जिसमें राज्यों द्वारा किया गया 813 करोड़ का अंशदान शामिल है।इस रकम में से राज्य सरकारों ने 73 फीसदी राशि यानी 8823 करोड़ रुपये नरेगा के मद में खर्च किए थे।

 

· ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार नरेगा अधिनियम के अन्तर्गत 3.81 करोड़ घरों का पंजीकरण किया गया था।इसमें 2.12 करोड़ घरों से काम मांगने की अर्जी आयी थी जबकि साल 2006-07 में काम प्रदान किया गया 2.10 करोड़ घरों को।

 

· काम के लिए अर्जी मुख्य रुप से ग्राम-पंचायत के स्तर पर देने की बात कही गई है।इस वजह से ग्राम पंचायत में इस आशय के आंकड़े का होना बहुत जरुरी है कि कितने लोगों ने रोजगार मांगे,कितने लोगों को रोजगार मुहैया कराया गया,कितने दिनों के रोजगार का सृजन हुआ और मजदूरी का भुगतान किस रीति से तथा कितना किया गया।निरीक्षण के दौरान मौका मुआयना से यह बात सामने आयी कि ग्राम पंचायत के स्तर पर आंकड़ों को व्यापक रुप से नहीं सहेजा गया है और इससे आंकड़े के दस्तावेजों की विश्वनीयता पर संदेह उठते हैं। आंकड़ों की अव्यवस्था के कारण निरीक्षण के दौरान यह जान पाना मुश्किल हो गया कि काम मांगने वाला परिवार वाकई काम न मिल पाने की सूरत में बेरोजगारी भत्ता पाने योग्य है भी या नहीं क्योंकि काम की मांग के साथ आयी हुई अर्जियों का तारीखवार संकलन नहीं हुआ है और अधिकांश मामलों में इन अर्जियों की प्राप्ति की रसीद तारीखवार नहीं दी गई है। इन बातों से संकेत मिलते हैं कि काम की जितनी संख्या में काम की मांग की गई उसकी तुलना में कम लोगों को काम दिया जा सका।

 

· निरीक्षण के दौरान देर से मजदूरी भुगतान करने के अनेक मामले सामने आए और मजदूरी ना देने की एवज में कोई मुआवजा दिया गया हो इस बात के भी कोई संकेत नहीं मिले।इस बात की संभावना तो है ही कि जितनी तादाद में लोगों ने काम की मांग की उतनी तादाद में लोगों को काम मिला नहीं, साथ ही इस बात के भी उदाहरण हैं कि बेरोजगारी भत्ता नहीं दिया गया जबकि रोजगार मांगने वाले का नाम रिकार्ड में दर्ज है और उससे पता चल रहा है कि काम मांगने की अर्जी के आए हुए 15 दिन से ज्यादा हो गए हैं।ऐसी दशा में नियम के उल्लंघन की साफ साफ स्थिति बनती है लेकिन नियम की अवहेलना के लिए दोषी व्यक्ति पर किसी किस्म का जुर्माना नहीं किया गया।इस बात से पता चलता है कि नरेगा के क्रियान्वयन में शिकायतों की सुनावाई और उनके निपटारे की व्यवस्था कारगर नहीं है और इसकी वजह से गरीब ग्रामीण परिवार के व्यस्क व्यक्तियों को सौ दिनों के रोजगार की वैधानिक गारंटी देने के उद्देश्य की ही हार हो रही है।

 

· आंकड़ों को सहेज कर ना रखने के कारण नरेगा अधिनियम के उद्देश्य की कई तरह से हानि हुई है। चूंकि काम देने की गुजारिश करने वाली अर्जियों का लेखा जोखा तारीखवार मौजूद नहीं है इसलिए अर्जी देने वाला इस बात का भी दावा नहीं कर सकता कि उसने काम मांगा है पर दिया नहीं गया और इस वजह से उसे बेरोजगारी भत्ता दिया जाये।

 

· सीएजी की जांच में यह बात भी सामने आयी कि नरेगा के अन्तर्गत वित्तीय प्रबंधन भी लचर है।नरेगा के मद में दी जाने वाली राशि का प्रबंधन विभिन्न स्तरों पर पारदर्शिता बनाए रखने के लिए व्यवस्थित तरीके से करने की बात कही गई है लेकिन कई मामलों में ऐसा नहीं किया गया।जांच का निष्कर्ष है कि ना तो काम दिया गया है इसकी जांच के लिए कदम उठाए गए और नहीं ग्राम सभा द्वारा सोशल आँडिट(सामाजिक अंकेक्षण) का काम कारगर तरीके से सम्पन्न हो पाया।

 

· सीएजी के दल ने सोशल आँडिट के बाद कुछ चुने हुए जिलों में इस बात की जांच के लिए साल 2008 के फरवरी-मार्च में दौरा किया कि रिकार्ड रखने के काम में कहां तक सुधार हुआ है।यह दौरा 6 राज्यों के 12 जिलों के 12 प्रखंडों में हुआ और इसमें 24 ग्राम पंचायतों का जायजा लिया गया। इससे पता चला कि उत्तरप्रदेश में रिकार्ड रखने के कामकाज में सुधार आया है-खासकर सोशल आँडिट होने के बाद लेकिन ग्राम-पंचायत के स्तर पर रोजगार की पंजी में आंकड़ों को दर्ज करने के काम में अब भी बहुत कुछ सुधार की गुंजाइश बची हुई है।

 


Rural Expert
 

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