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भूख | शिक्षा
शिक्षा

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 नवीनतम(साल 2015 के जनवरी में जारी) एनुअल स्टेटस् ऑव एजुकेशन रिपोर्ट(असर) के अनुसार-
 
ASER 2014 report (Please click link1, link2 & link3 to access)
 
एनुअल स्टेटस् ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट(असर 2014) भारत के 577 ग्रामीण जिलों के 16,497  गांवों के 341,070 परिवारों तथा 569,229 बच्चों के सर्वेक्षण पर आधारित है।

असर 2014 के मुख्य निष्कर्ष निम्नलिखित हैं-

नामांकन का स्तर और स्कूल वंचित बच्चों का अनुपात

•  बीते पाँच सालों की तरह छठे यानि साल 2014 में भी 6-14 साल के बच्चों का नामांकन प्रतिशत 96 या उससे ज्यादा है। फिलहाल स्कूल वंचित बच्चों की संख्या 3.3% पर कायम है।.

• राष्ट्रीय पर पिछले साल स्कूल वंचित बच्चों की संख्या 3.3 प्रतिशत थी जो कि साल 2014 में भी कायम रही।

•  कुछ राज्यों में स्कूल वंचित लड़कियों(11-14 साल) की संख्या 8% से भी ज्यादा है। ऐसे राज्यों में शामिल हैं राजस्थान (12.1%) और उत्तरप्रदेश (9.2%).

•  हालांकि शिक्षा का अधिकार अधिनियम में वर्णित आयु-वर्ग (6-14 वर्ष) में नामांकन का प्रतिशत बहुत ऊँचा है लेकिन 15-16 वर्ष के बच्चों के बीच स्कूल वंचितों की तादाद अच्छी खासी है। राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो इस आयु-वर्ग के 15.9%  लड़के और 17.3% लड़कियां फिलहाल स्कूल वंचित हैं।

निजी स्कूलों में नामांकन

•  साल 2014 में ग्रामीण इलाकों में 6-14 आयु-वर्ग के 30.8%  बच्चों का दाखिला निजी स्कूलों में था। पिछले साल निजी स्कूलों में नामांकन इससे कहीं कम 29% था।.

• साल 2014 में 7-10 के आयु-वर्ग में शामिल 35.6%  बच्चे निजी स्कूलों में नामांकित थे जबकि इसी आयु-वर्ग की निजी स्कूलों में नामांकित लड़कियों की संख्या 27.7%  थी।  11-14 आयुवर्ग के 33.5% लड़कों को नामांकन निजी स्कूलों में था जबकि इस आयु-वर्ग की 25.9% लड़कियां निजी स्कूलों में नामांकित थीं।

•  देश के पाँच राज्यों में प्राथमिक स्तर पर सरकारी स्कूलों की तुलना में निजी स्कूलों में नामांकन का प्रतिशत 50 प्रतिशत से ज्यादा है। ये राज्य हैं मणिपुर (73.3%), केरल (62.2%), हरियाणा (54.2%), उत्तरप्रदेश (51.7%), तथा मेघालय (51.7%).

पढ़ सकने की क्षमता

•  पढ़ने की क्षमता साल 2014 में भी निराशाजनक पायी गई। 2014 में तीसरे दर्जे में पढ़ने वाले केवल एक चौथाई विद्यार्थी ही इस काबिल थे कि वे दूसरी कक्षा के लिए तैयार की गई पाठ्यपुस्तक को पढ़ सकें। पांचवें क्लास में पढ़ने वाले ऐसे बच्चों की संख्या तकरीबन 50 प्रतिशत पायी गई। यहां तक कि आठतवीं क्लास में पढ़ने वाले मात्र 75 प्रतिशत बच्चे ही दूसरी क्लास के लिए तैयार की गई पाठ्यपुस्तक को पढ़ पाने के काबिल थे। इसका अर्थ यह हुआ कि आठवीं क्लास के 25 प्रतिशत बच्चे इस काबिल भी नहीं कि वे दूसरी क्लास के लिए तैयार की गई पाठ्यपुस्तक को पढ़ सकें।

• बीते कुछ सालों में बच्चों की पढ़ पाने की क्षमता में नाम-मात्र का सुधार आया है। मिसाल के लिए साल 2012 में पांचवीं क्लास के 46.8 प्रतिशत बच्चे दूसरी क्लास की पाठ्यपुस्तक को पढ़ पाने में सक्षम थे। साल 2013 में ऐसे बच्चों की संख्या बढ़कर 47 प्रतिशत और साल 2014 में 48.1 प्रतिशत हो गई है। साल 2012 में तीसरी क्लास के 38.7% बच्चे पहली क्लास के लिए तैयार किए गए पाठ को पढ़ पाने में सक्षम थे। साल 2014 में ऐसे बच्चों की संख्या बढ़कर 40.2 प्रतिशत हो पायी है।

गणित कर पाने की क्षमता

• बीते कुछ सालों से ग्रामीण भारत के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की गणित कर पाने की क्षमता से संबंधित आंकड़ों में विशेष बदलाव नहीं आया है। साल 2012 में तीसरी क्लास के  26.3% बच्चे दो अंकों के घटाव का प्रश्न हल कर पाने में सक्षम पाये गये थे। साल 2014 में ऐसे बच्चों की संख्या 25.3 प्रतिशत है।साल 2012 में पांचवीं क्लास में पढ़ने वाले 24.8% विद्यार्थी भाग करने के सामान्य सवाल हल कर पाने में सक्षम थे। ऐसे बच्चों की संख्या साल 2014 में बढ़कर 26.1 प्रतिशत हो गई है।

• साल 2009 में दूसरी क्लास के 11.3 प्रतिशत बच्चे 1-9 तक की संख्या को पहचान पाने में सक्षम नहीं थे। ऐसे विद्यार्थियों की संख्या बढ़कर साल 2014 में 19.5 प्रतिशत हो गई है।

 
• आठवीं क्लास के बच्चों के बीच ऐसे बच्चों की संख्या जो घटाव का सवाल हल कर पाने में सक्षम हों, साल 2010 से घट रही है। साल 2010 में आठवीं क्लास में पढ़ने वाले 68.3 प्रतिशत विद्यार्थी तीन अंकों की संख्या में एक अंक की संख्या से ठीक-ठीक भाग लगा पाने में सक्षम थे, साल 2014 में ऐसे विद्यार्थियों की संख्या घटकर 44.1 प्रतिशत हो गई है।

• आठ से पाँच साल की अवधि का सिंहावलोकन करें तो स्पष्ट हो जाता है कि हर राज्य में बच्चों में गणित कर सकने की क्षमता में गिरावट आ रही है। सिर्फ कर्नाटक और आंध्रप्रदेश ही अपवाद हैं जहां स्थिति कई सालों से स्थिर बनी हुई है।

अंग्रेजी पढ़ने की क्षमता

• प्राथमिक स्तर की नीचे की कक्षाओं में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की अंग्रजी पढ़ने की क्षमता में खास बदलाव नहीं आया है। वर्ष 2014 की असर रिपोर्ट में कहा गया है कि पांचवीं क्लास में पढ़ने वाले तकरीबन 25 प्रतिशत विद्यार्थी अंग्रेजी के सरल वाक्य पढ़ने में सक्षम हैं। यहां संख्या 2009 से अपरिवर्तित चली आ रही है।

• अंग्रेजी पढ़ने की क्षमता अपर प्राइमरी के छात्रों में कम हुई है। साल 2009 में आठवीं क्लास के 60.2% विद्यार्थी अंग्रेजी के सरल वाक्य पढ़ने में सक्षम थे। 2014 में ऐसे विद्यार्थियों की संख्या कम होकर 46.8% रह गई है।

• जो बच्चे(चाहे वे किसी भी क्लास में पढ़ते हों) अंग्रेजी के शब्दों को पढ़ने में सक्षम थे उसमें मात्र 60 प्रतिशत बच्चे उसका ठीक ठीक मायने बता पाने के काबिल थे। पांचवीं क्लास में पढ़ने वाले जो बच्चो अंग्रेजी के सरल वाक्य पढ़ने में सक्षम थे उनमें 62.2 प्रतिशत बच्चे उस वाक्य का मतलब बता सकते थे।


शिक्षक-छात्र अनुपात

• साल 2014 के असर के आंकड़े इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि प्राथमिक स्कूलों के 71.4% बच्चे तथा अपर प्राइमरी स्कूलों के 71.1%  बच्चे सर्वेक्षण टीम के दौरे के दिन स्कूल में मौजूद थे। साल 2013 में यह संख्या क्रमश 70.7% तथा 71.8% थी।

• हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, केरल, तमिलनाडु में छात्रों की उपस्थिति 80 से 90 प्रतिशत तक थी जबकि यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, मध्यप्रदेश में छात्रों की उपस्थिति 50 से 60 प्रतिशत के बीच थी।

•  2009 में प्राइमरी(74.3% ) और अपर प्राइमरी स्कूलों(77%) में छात्रों की उपस्थिति 2014 की तुलना में ज्यादा थी।


• साल 2014 में सर्वेक्षण टीम के भ्रमण के दिन स्कूलों में 85 प्रतिशत शिक्षक मौजूद थे, साल 2009 में 89.1 प्रतिशत शिक्षक असर की सर्वेक्षण टीम के भ्रमण के दिन स्कूलों में उपस्थित पाये गये थे।

स्कूलों में मौजूद सुविधाएं

• शिक्षा का अधिकार अधिनियम में वर्णित शिक्षक छात्र अनुपात का पालन करने वाले स्कूलों की संख्या 2013 में 45.3% थी जो साल 2014 में बढ़कर 49.3% हो गई है। 2010 में यह आंकड़ा 38.9% था।

• 75.6% स्कूलों में पेयजल की सुविधा थी। 2010 में पेयजल की सुविधा वाले स्कूलों की संख्या 72.7% थी। बिहार, यूपी, गुजरात तथा हिमाचल प्रदेश में 85 प्रतिशत से ज्यादा स्कूलों में पेयजल की सुविधा मौजूद पायी गई।

•  साल 2010 के बाद से स्कूलों में उपयोग की हालत वाले शौचालयों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो साल 2014 में 62.6% स्कूलों में शौचालय उपयोग की दशा में पाये गये जबकि 2010 में ऐसे विद्यालयों की तादाद महज 47.2% थी।


• साल 2014 में 19.6% स्कूलों में कंप्यूटर मौजूद पाये गये जबकि साल 2010 में ऐसे स्कूलों की संख्या 15.8% थी। गुजरात के 81.3% स्कूलों में कंप्यूटर मौजूद पाया गया, केरल में ऐसे स्कूलों की तादाद 89.8% थी तो महाराष्ट्र में 46.3% तथा तमिलनाडु में 62.4%।

• साल 2010 में 62.6% स्कूलों में पुस्तकालय मौजूद थे जबकि साल 2014 में ऐसे विद्यालयों की संख्या 78.1% हो गई है।साल 2010 में असर टीम के भ्रमण के दिन 37.9% विद्यार्थी पुस्तकालय की पुस्तकों का उपयोग करते पाये गये जबकि साल 2014 में ऐसे विद्यार्थियों की संख्या 40.7% हो गई है।
 

Rural Expert


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