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भूख | शिक्षा
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What's Inside

2021 स्टेट ऑफ द एजुकेशन रिपोर्ट फॉर इंडिया: नो टीचर, नो क्लास (अक्टूबर, 2021 जारी)


इस रिपोर्ट को यूनेस्को के दिल्ली ऑफिस ने, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन टीचर एजुकेशन की मदद से तैयार किया है। (अन्य विशेषज्ञों की मदद भी ली है)

यह स्टेट एजुकेशन पर आई तीसरी रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट का मुख्य केंद्र अध्यापकों, तालीम देने और आध्यपकों के शिक्षण पर है। यह रिपोर्ट, तालीम देने के पेशे पर मोटी–मोटी समझ देने की कोशिश करती है। 
यूनेस्को की इस रिपोर्ट का मकसद नई शिक्षा नीति को लागू करने में सहज मार्ग बनाना और सतत विकास के शिक्षा संबंधी लक्ष्य की समय सीमा में प्राप्ति को आसान बनाना है।

साथ ही इस रिपोर्ट ने कई अन्य पहलुओं जैसे– सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के साथ अध्यापकों के अनुभव, कोविड महामारी का शिक्षक के पेशे पर प्रभाव, को छुआ है।महामारी के इस काल ने शिक्षकों की महत्ता और गुणवत्तापूर्ण तालीम देने की जरूरत पर भी ध्यान आकर्षित किया है। यह रपट इसी ध्यानाकर्षण का परिणाम है।

तो जानते हैं रिपोर्ट की मुख्य बातें (कृपया रिपोर्ट के लिए यहां, यहां और यहां क्लिक कीजिए)


शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली के आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए, रपट में मौजूदा अध्यापकों की संख्या, शिक्षकों की सुलभता और काम करने की स्थिति को उकेरा गया है।
निजी क्षेत्र की शैक्षणिक संस्थानों से 30 फीसदी और सरकारी क्षेत्र के शैक्षणिक संस्थानों से 50 फीसदी मास्टर ताल्लुकात रखते हैं।
उच्च माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी पाई गई है।
विशेष शिक्षण, संगीत, कला सहित शारीरिक शिक्षा के अध्यापकों की उपलब्धता के बारे में कोई आंकड़ा प्रदान नहीं किया गया है।

भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में शिक्षकों की सुलभता और योग्यता युक्त शिक्षकों की नियुक्ति जरूरी है। शिक्षकों के लिए मूलभूत जरूरतों व कार्य स्थलों की यथास्थिति उत्तर पूर्वी राज्यों सहित आकांक्षी जिलों में निम्नतर है। जिन्हें सुधारने की आवश्यकता है।
कुल मिलाकर अध्यापकों के पेशे में संख्या बल के संदर्भ में लैंगिक भेदभाव नजर नहीं आता है, लेकिन अंतरराज्यीय और ग्रामीण भारत के चश्मे से देखें तो अलग–अलग रंग लिए हुआ है।

शहरी इलाकों में महिला शिक्षकों की बहुलता है (गँवई इलाकों से विपरीत)। बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा, विशेष शिक्षा और निजी क्षेत्र की पाठशालाओं में भी महिला शिक्षक अधिक हैं।
मौजूदा समय में जितने शिक्षकों की जरूरत है उसकी तुलना में 10 लाख शिक्षक कम हैं। और जरूरतें समय के साथ बढ़ रही हैं। आने वाले 15 वर्षों के बाद वर्तमान की लगभग 30 फीसदी फैकल्टी को प्रतिस्थापित करना होगा।

पेशे का ओहदा और शर्तें

तालीम देने का ओहदा भारत में सामान्य श्रेणी का है। पर इसे ‘भविष्य के पेशे की तर्ज’ पर महिलाएं और ग्रामीण क्षेत्रों के युवा देखते हैं। प्रारंभिक शिक्षा के लिए अध्यापक और निजी विद्यालयों के शिक्षकगण दुर्लभ स्थिति में है। इनके वेतन, स्वास्थ्य लाभ और मातृत्व लाभ की निश्चिंतता नहीं होती है।

शिक्षकों के उत्तम गुणवत्ता की प्राप्ति के क्रम में, कई राज्यों ने शिक्षक पात्रता परीक्षा को भर्ती प्रक्रिया में एक अहम पहलू के तौर पर शामिल किया है।

शिक्षक और सूचना व संचार प्रौद्योगिकीरपट में महामारी के काल में शिक्षकों के सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के साथ के अनुभवों को वर्णित किया है। अधिकतर शिक्षकों का आईसीटी के प्रति दृष्टिकोण और विश्वास सकारात्मक था। हालांकि, उन्हें लगता है कि यह माध्यम अधिक समय लेता है और साथ ही उनमें इतना व्यावसायिक कौशल भी नहीं है।


दस सिफारिशें

  • निजी और सरकारी दोनों तरह के शिक्षकों की रोजगार शर्तों में सुधार करना।
  • उत्तर पूर्वी राज्यों में शिक्षकों की संख्या और कार्यस्थल की गुणवत्ता में बेहतरी करना।
  • अध्यापकों को अग्रिम पंक्ति के कामगारों का दर्जा दें।
  • पेशे की स्वायत्तता का सम्मान किया जाए।शारीरिक शिक्षक, संगीत, कला, व्यावसायिक शिक्षा, बाल्यवस्था में दी जा रही शिक्षा, के पदों में बढ़ोतरी के जाए।
  • शिक्षक के तरक्की का रास्ता सुदृढ़ किया जाए।
  • शिक्षकगण के समुदाय के गठन को बढ़ावा दिया जाए।
  • अध्यापकों को आईसीटी का जरूरी प्रशिक्षण प्रदान किया जाए।
  • आपसी पूछताछ के तहत तालीम देने के लिए जरूरी माहौल को तैयार किया जाए।

सन्दर्भ के लिए कृपया यहाँ और यहाँ क्लिक कीजिये


Rural Expert


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