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भूख | शिक्षा
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नवीनतम(साल 2014 के जनवरी में जारी) एनुअल स्टेटस् ऑव एजुकेशन रिपोर्ट(असर) के अनुसार-

http://img.asercentre.org/docs/Publications/ASER%20Reports
/ASER_2013/ASER2013_report%20sections/thenationalpicture.p
df


http://img.asercentre.org/docs/Publications/ASER%20Reports
/ASER_2013/4-pagers/enrollmentandlearning_hindi.pdf

 

नामांकन का प्रतिशत बहुत ऊँचा है। 6-14 साल के आयु-वर्ग के तकरीबन 96 फीसदी बच्चे स्कूलों में नामांकित हैं। लगातार पांचवें साल नामांकन का प्रतिशत 96 प्रतिशत या उससे ज्यादा है।

6-14 साल के आयु-वर्ग के जो बच्चे स्कूलों में नामांकित नहीं हैं उनकी संख्या साल 2012 में 3.5 प्रतिशत थी जो साल 2013 में घटकर 3.3 प्रतिशत हो गई है।

11-14 आयु-वर्ग की जो लड़कियां स्कूलों में नामांकित नहीं थी उनकी संख्या साल 2012 में 6 प्रतिशत थी जो साल 2013 में घटकर 5.5 प्रतिशत रह गई है। इस मामले में सर्वाधिक प्रगति उत्तरप्रदेश में हुई है। साल 2012 में 11-14 आयु-वर्ग की अनामांकित लड़कियों की संख्या यहां 11.5 प्रतिशत थी जो साल 2013 में घटकर 9.4 प्रतिशत रह गई। बहरहाल, राजस्थान में स्कूल वंचित लड़कियों का अनुपात लगातार दूसरे साल भी बढ़ा है। साल 2011 में ऐसी लड़कियों की संख्या राजस्थान में 8.9 प्रतिशत थी जो साल 2011 में बढ़कर 11.2 प्रतिशत थी जो साल 2012 में बढ़कर 11.2 प्रतिशत और 2013 में बढ़कर 12.1 प्रतिशत हो गई है।

राष्ट्रीय स्तर पर प्राइवेट स्कूलों में नामांकित बच्चों की संख्या में इजाफा हुआ है। प्राइवेट ट्यूशन क्लासेज करने वाले बच्चों क संख्या में भी पिछले साल के मुकाबले बढ़ोत्तरी हुई है।

साल 2006 में प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों(6-14 साल) की संख्या 18.7 प्रतिशत थी जो साल 2013 में बढ़कर 29 प्रतिशत हो गई। पिछले साल के मुकाबले प्राइवेट स्कूलों में नामांकित बच्चों की संख्या में बड़ी थोड़ी से बढ़ोत्तरी हुई है। पिछले साल प्राइवेट स्कूलों में नामांकित बच्चों की संख्या 28.3 प्रतिशत थी जो साल 2013 में बढ़कर 29 प्रतिशत हो गई है।

ग्रामीण क्षेत्रों में निजी स्कूलों में नामांकन के मामले में राज्यवार बहुत ज्यादा भिन्नता है। मणिपुर और केरल में 6-14 आयुवर्ग के दो तिहाई से ज्यादा बच्चे प्राइवेट स्कूलों में नामांकित हैं जबकि त्रिपुरा(6.7 प्रतिशत), पश्चिम बंगाल(7 प्रतिशत) और बिहार(8.4प्रतिशत) में प्राइवेट स्कूलों में नामांकित बच्चों की तादाद 10 फीसदी से भी कम है।

प्राइवेट ट्यूशन लेने वाले बच्चों (कक्षा 1-5 तक के) की संख्या राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ी है। साल 2012 में ऐसे बच्चों की संख्या 21.8 प्रतिशत थी तो साल 2013 में यह संख्या बढ़कर 22.6 प्रतिशत हो गई। कक्षा 6-8 के ऐसे विद्यार्थियों की संख्या साल 2012 में 25.3 प्रतिशत थी जो साल 2013 में बढ़कर 26.1 प्रतिशत हो गई है।

प्राइवेट स्कूलों में नामांकित बच्चों के समान प्राइवेट ट्यूशन लेने वाले बच्चों की संख्या में भी राज्यवार बहुत ज्यादा अन्तर है। त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में कक्षा 1-5 तक के 60 फीसदी से ज्यादा विद्यार्थी प्राइवेट ट्यूशन लेते हैं जबकि छत्तीसगढ़ और मिजोरम में ऐसे बच्चों की संख्या 5 फीसदी से भी कम है।

 

कक्षा 1-5 तक के ऐसे बच्चे जिन्हें अपनी शिक्षा में किसी ना किसी रुप में निजी सेवा( प्राइवेट स्कूल, प्राइवेट ट्यूशन या फिर दोनों) लेनी पड़ती है उनकी संख्या साल 2010 में 38.5 प्रतिशत थी जो साल 2011 में 42 प्रतिशत, 2012 में 44.2 प्रतिशत तथा साल 2013 में बढ़कर 45.1 प्रतिशत हो गई है।

राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा 1-5 तक के जो विद्यार्थी प्राइवेट ट्यूशन लेते हैं उनमें 68.4 प्रतिशत को प्रतिमाह 100 या उससे कम रुपये देने पड़ते हैं।

प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले क्लास 1-5 तक जो विद्यार्थी प्राइवेट ट्यूशन लेते हैं उनमें 100 या उससे कम रुपये प्रतिमाह देने वाले विद्यार्थी 36.7 फीसदी हैं और तकरीबन इतनी ही संख्या में प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थी 101 से 200 रुपये प्रतिमाह ट्यूशन पर खर्च करते हैं।

बच्चों की पठन-क्षमता में बीते साल के मुकाबले कुछ खास इजाफा नहीं हुआ है।

अखिल भारतीय स्तर पर देखें तो साल 2012 में कक्षा-3 के ऐसे विद्यार्थियों का अनुपात जो कक्षा-1 की बोधक्षमता के लायक तैयार किए गए अनुच्छेद को पढ़ पाने में सक्षम थे, 38.8 प्रतिशत था जो साल 2013 में बढ़कर 40.2 प्रतिशत हो गया है। इस सुधार सबसे ज्यादा निजी स्कूल के विद्यार्थियों में देखने को मिला है

सरकारी स्कूलों में कक्षा-3 में पढ़ने वाले ऐसे विद्यार्थियों की संख्या जो क्लास-1 की बोधक्षमता के लायक तैयार किए गए अनुच्छेद को पढ़ सकते हों, साल 2012 में 32 प्रतिशत थी जो साल 2013 में भी इसी संख्या पर स्थिर रही।

कक्षा-3 के विद्यार्थियों की पठन-क्षमता में साल 2009 के बाद से सर्वाधिक सुधार जम्मू-कश्मीर और पंजाब राज्य में देखने में आया है।

राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो कक्षा-5 के ऐसे विद्यार्थियों की संख्या, जो कक्षा-2 की बोधक्षमता के लायक तैयार पाठ्यसामग्री को पढ़ पाने में सक्षम थे, साल 2012 में लगभग 47 फीसदी थी जो साल 2013 में भी इतनी ही रही। इस संख्या में साल-दर-साल कमी आ रही है। साल 2009 में ऐसे विद्यार्थियों की संख्या 52.8 प्रतिशत थी तो साल 2012 में 46.9 प्रतिशत।

सरकारी स्कूलों की कक्षा-5 में नामांकित कक्षा-2 की बोधक्षमता के लायक तैयार पाठ्यसामग्री को पढ़ सकने वाले विद्यार्थियों की संख्या साल 2009 में 50.3 फीसदी थी जो साल 2011 में घटकर 43.8 प्रतिशत हुई और 2013 में ऐसे विद्यार्थियों की संख्या 41.1 फीसदी पर पहुंची है।

साल 2013 में हिमाचल प्रदेश, पंजाब, मिजोरम और केरल के सरकारी स्कूलों की कक्षा-5 में पढ़ने वाले तकरीबन 60 फीसदी विद्यार्थी कक्षा-2 की बोधक्षमता के लायक तैयार पाठ्यसामग्री को पढ़ पाने में सक्षम थे।

बुनियादी गणित कर पाने की क्षमता के मामले में बच्चे अब भी पिछड़ रहे हैं।

कक्षा-3 के ऐसे विद्यार्थियों की संख्या जो दो अंकों की संख्या वाला (हासिल लेने वाला) घटाव कर पाने में सक्षम थे इस साल भी पिछले साल के बराबर रही। इस तरह का गणित ज्यादातर राज्यों में कक्षा-2 की पाठ्यपुस्तक में शामिल है।

साल 2010 में सरकारी स्कूलों की कक्षा-3 में पढ़ने वाले तकरीबन 33.2% विद्यार्थी घटाव कर पाने में सक्षम थे जबकि प्राइवेट स्कूलों में उक्त कक्षा में पढ़ने वाले ऐसे विद्यार्थियों की संख्या 47.8 फीसदी थी। इस मामले में सरकारी और प्राइवेट स्कूलों के विद्यार्थियों के बीच अंतर समय के साथ बढ़ता गया है।

  साल 2013 में सरकारी स्कूलों की कक्षा-3 में पढ़ने वाले 18.9 फीसदी विद्यार्थी सामान्य घटाव कर पाने में सक्षम थे जबकि प्राइवेट स्कूलों की इसी कक्षा में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के बीच यह तादाद 44.6 फीसदी पायी गई।

राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो कक्षा-5 के ऐसे विद्यार्थियों की संख्या जो तीन अंकों की संख्या में दो अंकों की संख्या से भाग दे पाने में सक्षम थे साल 2012 में 24.9 प्रतिशत थी जो साल 2013 में बढ़कर 25.6 प्रतिशत हो गई। भाग लगाने के ऐसे गणितीय सवाल ज्यादातर राज्यों में क्लास-3 से लेकर क्लास-5 की पाठ्यपुस्तकों में दिए गए हैं।

सरकारी स्कूलों में इस श्रेणी का भाग दे पाने में सक्षम विद्यार्थियों की संख्या (कक्षा-5 के) साल 2013 में 20.8 फीसदी पायी गई जबकि प्राइवेट स्कूलों में उक्त कक्षा में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के बीच यह संख्या 38.9 फीसदी थी।

तीन अंकों की संख्या में एक अंक की संख्या से भाग दे पाने में सक्षम कक्षा पाँच में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या हिमाचल प्रदेश, पंजाब और मिजोरम में तकरीबन 40 प्रतिशत है(साल 2013 में)।


Rural Expert


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