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भूख | सवाल सेहत का
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What's Inside

"सामाजिक उपभोग: स्वास्थ्य" पर 71 वें दौर का राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण साल 2014 में जनवरी से जून के महीने के दौरान आयोजित किया गया था. 71 वें दौर के राष्ट्रीय सर्वेक्षण के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में 36,480 घरों और शहरी क्षेत्रों में 29,452 घरों से जानकारी एकत्र की गई थी.

71वें दौर की एनएसएस रिपोर्ट: सामाजिक उपभोग में भारत देश के प्रमुख स्वास्थ्य संकेतक (जून 2015 में प्रकाशित) रिपोर्ट के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं (कृपया पूरी रिपोर्ट एक्सेस करने के लिए यहां क्लिक करें; और मुख्य बिंदु पढ़ने के लिए कृपया यहां क्लिक करें):


अस्पताल में भर्ती हुए बगैर उपचार

• बीमार व्यक्तियों (पीएपी) का अनुपात (प्रति 1000), ग्रामीण भारत में 89 व्यक्ति और शहरी भारत में 118 व्यक्ति है. यह जीवित व्यक्तियों की संख्या और बीमारियों (प्रति 1000 व्यक्तियों) के हिसाब से मापा जाता है.

• लोगों का एलोपैथी उपचार के प्रति झुकाव (दोनों क्षेत्रों में लगभग 90%) सबसे अधिक था. ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में आयुष (आयुर्वेद, योग या प्राकृतिक चिकित्सा यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी) समेत ’अन्य’ केवल 5 से 7 प्रतिशत ही लोगों ने इस्तेमाल किए गए थे. इसके अलावा, शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण (पुरुष और महिला दोनों के लिए) क्षेत्रों में अनुपचारित लोगों की संख्या अधिक था.

• निजी डॉक्टर दोनों क्षेत्रों (ग्रामीण और शहरी) में उपचार का सबसे महत्वपूर्ण एकल स्रोत थे. 70 प्रतिशत से अधिक (ग्रामीण क्षेत्रों में 72 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 79 प्रतिशत) बीमारियों का इलाज निजी क्षेत्र (निजी डॉक्टरों, नर्सिंग होम, निजी अस्पतालों, धर्मार्थ संस्थानों, आदि) से किया गया.

 

अस्पताल में भर्ती कर किया गया उपचार

• किसी भी चिकित्सा संस्थान में बीमार व्यक्ति को अगर अस्पताल में भर्ती कर इलाज चिकित्सा उपचार किया जाए तो को अस्पताल में कर किया गया उपचार माना गया है. 365 दिनों की संदर्भ अवधि के दौरान, शहरी आबादी से 4.4 प्रतिशत व्यक्तियों को उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था जबकि शहरों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पताल में भर्ती किए गए व्यक्तियों का अनुपात कम (3.5 प्रतिशत) था.

• यह देखा गया है कि ग्रामीण आबादी में उपचार के लिए 42 प्रतिशत लोगों को सार्वजनिक अस्पताल और 58 प्रतिशत को निजी अस्पतालों में भर्ती होना पड़ा था. जबकि शहरी भारत में उपचार के लिए 32 प्रतिशत लोगों को सार्वजनिक अस्पताल और 68 प्रतिशत को निजी अस्पतालों में भर्ती होना पड़ा था. 

• अस्पताल में भर्ती कर किए गए इलाज के दौरान एलोपैथी उपचार को सबसे अधिक तव्वजो दी गई.

 

उपचार की लागत

•  अस्पताल में भर्ती कर उपचार करने के मामले में औसत चिकित्सा खर्च की बात करें तो निजी अस्पतालों (प्रति व्यक्ति 25850 रुपये) की तुलना में सरकारी अस्पतालों (6120 रुपये) में लोगों द्वारा इलाज के लिए कम राशि खर्च की गई. बीमारियों में सबसे ज्यादा खर्च कैंसर (56712 रुपये) के इलाज और कार्डियो-वैस्कुलर बीमारियों (31007 रुपये) के लिए दर्ज किया गया.

• अस्पताल में भर्ती हुए बिना किए गय उपचार परपर औसत चिकित्सा खर्च ग्रामीण भारत में 509 रुपये और शहरी भारत में 639 रुपये दर्ज किया गया.

• 86 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या और 82 प्रतिशत शहरी आबादी अभी भी स्वास्थ्य खर्च सहायता की किसी भी योजना में शामिल नहीं हैं. हालांकि, सरकार स्वास्थ्य सुरक्षा कवरेज के तहत लगभग 12 प्रतिशत शहरी और 13 प्रतिशत ग्रामीण आबादी को राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई) या इसी तरह की योजना के माध्यम से लाने में सक्षम थी. शहरी क्षेत्र के 5वें पंचक वर्ग (सामान्य मासिक प्रति व्यक्ति उपभोक्ता खर्च) के केवल 12 प्रतिशत घरों में निजी बीमा कंपनियों से चिकित्सा बीमा की कुछ व्यवस्थाएं थी.

 

नवजात पर खर्च

• ग्रामीण क्षेत्र में 9.6% महिलाएं (उम्र 15-49) 365 दिनों की संदर्भ अवधि के दौरान किसी भी समय गर्भवती थीं; शहरी आबादी में यह अनुपात 6.8% था. जीवन स्तर के साथ बच्चे के जन्म के स्थान के संबंध के साक्ष्य ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में नोट किए जाते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में, लगभग 20% बच्चे अस्पतालों के अलावा घर या किसी अन्य स्थान पर जन्में थे, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह अनुपात 10.5% था. ग्रामीण क्षेत्र में चिकित्सा संस्थाओं में जन्में नवजातों की बात करें तो 55.5% सार्वजनिक अस्पताल में और 24% निजी अस्पताल में जन्में थे, जबकि शहरी क्षेत्र में यह आंकड़ा क्रमशः 42% और 47.5% था.

• ग्रामीण क्षेत्र में प्रति नवजात औसतन 5544 रुपये खर्च हुए थे और शहरी क्षेत्र में यह खर्च 11685 रुपये था. ग्रामीण आबादी में नए जन्म पर औसतन खर्च सार्वजनिक क्षेत्र के अस्पताल में 1587 रुपये प्रति नवजात और निजी क्षेत्र के अस्पताल में 14778 रुपये प्रति नवजात था, जबकि शहरी आबादी में यह खर्च सरकारी अस्पताल में 2117 रुपये प्रति नवजात और निजी अस्पताल में 20328 रुपये प्रति नवजात था.


 

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